Bhaktamar Stotra Shloka-4 With Meaning

Abhishek Jain
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Bhaktamar Stotra Shloka-4 With Meaning

भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म का महान प्रभावशाली स्तोत्र है । इस स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंग ने की थी । इस स्तोत्र की रचना संस्कृत भाषा में हुई थी , जो इस स्तोत्र की मूल भाषा है 

परन्तु यदी आपको संस्कृत नही आती तो आपकी सुविधा के लिए Bhaktamar Stotra के श्र्लोको (Shloka) को हमने मूल अर्थ के साथ - साथ हिन्दी में अनुवादित करते हुये उसका अर्थ भी दिया है , साथ हि साथ जिन लोगो को English आती है और संस्कृत नही पढ सकते वह सधार्मिक बंधु भी English मे Bhaktamar stotra का पाठ कर सकते है ।

इस प्रकार से Bhaktamar Stotra Shloka-4 With Meaning की सहायता से आप आसानी से इस स्तोत्र का पाठ कर सकते है ।

चाहे भाषा कोई भी हो हमारी वाणी से श्री आदीनाथ प्रभु का गुणगाण होना चाहिए । नित्य प्रातः काल मे पूर्ण शुद्धता के साथ श्री भक्तामर स्तोत्र का पाठ अवश्य करें ।


Bhaktamar Stotra Shloka-4

Bhaktamar Stotra Shloka - 4

जलजंतु निरोधक

(In Sanskrit)

वक्तुं गुणान् गुण-समुद्र! शशांक-कांतान्,

कस्ते क्षमः सुर-गुरु-प्रतिमोपि बुद्धया ।

कल्पांत-काल-पवनोद्धत-नक्र-चक्रं,

को वा तरीतु-मलमम्बु निधिं भुजाभ्याम् ॥4॥

(In English)

vaktum gunan gunasamudra shashankkantan

kaste kshamah suragurupratimoapi buddhya |

kalpanta - kal - pavanoddhata - nakrachakram

ko va taritumalamambunidhim bhujabhyam || 4 ||

Explanation (English)

O Lord, you are the ocean of virtues. Can even 

Brihaspati, the teacher of gods, with the help of his 

infinite wisdom, narrate your virtues spotless as the 

moonbeams? (certainly not.) Is it possible for a man to 

swim across the ocean full of alligators, lashed by 

gales of deluge? (certainly not).

(हिन्दी में )

गुन-समुद्र तुम गुन अविकार, कहत न सुर-गुरु पावें पार |

प्रलय-पवन-उद्धत जल-जंतु, जलधि तिरे को भुज बलवंतु ||४||

(भक्तामर स्तोत्र के चतुर्थ श्लोक का अर्थ )

हे गुणों के भंडार! आपके चन्द्रमा के समान सुन्दर गुणों को कहने लिये ब्रहस्पति के सद्रश भी कौन पुरुष समर्थ है? अर्थात् कोई नहीं अथवा प्रलयकाल की वायु के द्वारा प्रचण्ड है मगरमच्छों का समूह जिसमें ऐसे समुद्र को भुजाओं के द्वारा तैरने के लिए कौन समर्थ है अर्थात् कोई नहीं |


" भगवान ऋषभदेव जी की जय "


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