जैन धर्म में उपाध्याय कौन होते है ?
1. ये साधु / साध्वी जी को जैन आगम सिखाते है ।
2. ये अंग - उपांग पढाने का कार्य करते है , ये शास्त्रो के विद्धान होते है ।
3. उपाध्याय जी जैन साधुओ में दूसरा सबसे प्रमुख पद है , जिस पर वरिष्ठ मुनी यह पद धारण करता है ।
4. ये नवकार मंत्र के चर्तुथ पद में ध्याये जाते है
5. णमो उवज्झायाणं - उपाध्यायों को नमस्कार हो, उप (अर्थात् समीप) + अध्याय (अर्थात् अध्ययन करना) जिनके पास शास्त्र का ज्ञान प्राप्त किया जाए वे उपाध्याय हैं ।
6. ये ग्यारह अंग और बारह उपांग आदि आगमों के ज्ञानी हैं। साधु, साध्वी,श्रावक, श्राविका को ज्ञान की शिक्षाएं देते हैं। उपाध्याय प्रज्वलित दीपक के समान हैं। जो अप्रकाशित दीपकों को अपने ज्ञान ज्योति के स्पर्श से प्रकाशमान बनाते हैं।
7. ग्यारह अंग, बारह उपांग , चरण , करण सत्तरी के धारक, इस प्रकार उपाध्याय के 25 गुण होते हैं।
8. जैन उपाध्याय ज्ञान के भणडार होते है ।
9. ये कठोर नियमों को सहजता के साथ समभाव से सहते है और सयंम के पथ पर स्वयं तो अग्रसर होते हि है , अन्य साधुओ की भी धर्म प्रभावना से मदद करते है ।
इस प्रकार से धर्म के धुरंधर पंचमहाव्रत धारी साधु चतुर्विध श्री संघ के ज्ञान नायक उपाध्याय जी होते है ।
अगर कोई त्रुटी हो तो ' मिच्छामी दुक्कडम '.
" जय जिनेन्द्र "
जानिये - जैन साधु नंगे पांव क्यों चलते है ?
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" जय जिनेन्द्र "
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