संवत्सरी महापर्व: संक्षिप्त प्रतिक्रमण का मूल पाठ

Abhishek Jain
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प्रतिक्रमण

जं दुक्कडं ति मिच्छा,
तं भुज्जो कारणं अपूरेतो ।
तिबिहेणं पडिक्कतो;
तस्स खलु दुक्कडं मिच्छा ।

जो साधक विविध योग से प्रतिक्रमण करता है,
 जिस पाप के लिए
मिच्छामि दुक्कडं दे देता है, फिर भविष्य में उस पाप को नहीं करता
है -वस्तुतः उसी का दुष्कृत मिथ्या अर्थात् निष्फल होता है ।


मिच्छामी दुक्कडम का पाठ

संक्षिप्त प्रतिक्रमण

 जं जं मणेण बद्धं, जं जं भासाए भासियं पावं।

जं जं कारण कयं, मिच्छा मि दुक्कडं तस्स ।।१।।

खामेमि सव्वे जीवा, सव्वे जीवा खमंतु में ।

मित्ती मे सव्व भूएस, वेरं मज्झं न केणइ ।२।।

सव्वस्स समण-संघस्स, भगवओ अंजलिं करिअ सीसे।

सव्वं खमावइत्ता, खमामि सव्वस्स अहयं पि ।। ३ ।।

आयरिए उवज्झाए, सीसे साहम्मिए कुल-गणे य ।

जे मे केइ कसाया, सव्वे तिविहेण खामेमि ।।४।।

सारं दंसण-नाणं, सारं तव-नियम-संजम-सीलं।

सारं जिणवरं धम्मं, सारं संलेहणा मरणं ||५||

एगो मे सासओ अप्पा, नाण दंसण-संजूओ

सेसा मे बाहिरा भावा, सव्वे संजोग--लक्खणा ।।६।।

मज्जं विसय कसाया, निद्दा विगहा य पंचमी भणिया।

एए पंच पमाया, जीवं पाडेंति संसारे ।।७।।


नोट- उपरोक्त संक्षिप्त प्रतिक्रमण अल्प समय हेतु दिया है, श्रावक उभयकाल पूर्ण प्रतिक्रमण ही करें ।


पढ़िये - आलोचना पाठ


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