सिद्ध अरिहंत स्तुति सूत्र
णमोत्थुणं, अरिहंताणं, भगवंताणं ।1।
आइगराणं, तित्थयराणं, सयं-संबुद्धाणं ।2।
पुरिसुत्तणामं, पुरिस-सीहाणं, पुरिस-वर-
पुंडरियाणं, पुरिस-वर गंधहत्थीणं ।3।
लोगुत्तमाणं, लोगं-नाहाणं, लोग-हियाणं-
लोग-पईवाणं, लोग-पज्जोय-गराणं ।4।
अभय-दयाणं, चक्खु-दयाणं, मग्ग-दयाणं-
सरण दयाणं, जीव-दयाणं, बोहि-दयाणं ।5।
पढिये - सामायिक के आवश्यक सूत्र
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धम्म-सारहीणं, धम्म-वर-चाउरंत-चक्कवट्टीणं ।6।
दीवो, ताणं, सरण-गइ-पइट्ठाणं, अपिडहय-
वरनाण-दंसण-धराणं, वियट्ट-छउमाणं ।7।
जिणाणं-जावयाणं, तिण्णाणं-तारयाणं,
बुद्धाणं-बोहयाणं, मुत्ताणं-मोयगाणं ।8।
सव्वन्नूणं-सव्वदरिसणं, सिव-मयल-मरुअ-
मणंत-मक्खय-मव्वाबाह-मपुणरावित्ति, सिद्धिगइ-
नामधेयं ठाणं संपत्ताणं,*नमो जिणाणं, जियभयाणं ।9।
* (दूसरे णमोत्थुणं में संपत्ताणं के स्थान पर संपाविउ कामाणं बोलें।)
नोट - सिद्ध भगवान की स्तुति में 'ठाणं संपत्ताणं' बोलना चाहिए और अरिहंत भगवान की स्तुति में 'ठाणं संपाविउ कामाणं' बोले ।
पढिये - श्री पैंसठिया यन्त्र का छन्द
णमोत्थुणं सूत्र (प्रणिपात पाठ) का हिन्दी भावार्थ
श्री अरिहंत भगवान् को नमस्कार हो।
(अरिहंत भगवान् कैसे हैं ? ) धर्म-तीर्थ की स्थापना
करनेवाले हैं, अपने आप प्रबुद्ध हुए हैं।
पुरुषों में श्रेष्ठ हैं, पुरुषों में सिंह हैं, पुरुषों
में पुण्डरीक कमल हैं, पुरुषों में श्रेष्ठ गन्धहस्ती
हैं, लोक में उत्तम हैं, लोक के नाथ हैं, लोक के
हित-कर्ता हैं, लोक में दीपक हैं, लोक में उद्योत
के करनेवाले हैं।
पढिये - भगवान महावीर और चंड कौशिक (जैन कहानी)
अभय देने वाले हैं, ज्ञान रूप नेत्र के देने
वाले हैं, धर्म-मार्ग के देनेवाले हैं, शरण के देने
वाले हैं, संयम जीवन के देनेवाले हैं, बोधि-सम्यक्त्व के देनेवाले हैं, धर्म के दाता हैं, धर्म के
उपदेशक हैं, धर्म के नेता हैं, धर्म के सारथी संचालक हैं।
चार गतियों का अन्त करनेवाले श्रेष्ठ धर्म
के चक्रवर्ती हैं, अप्रतिहत एवं श्रेष्ठ ज्ञान, दर्शन
के धारण करनेवाले हैं, ज्ञानावरण आदि घाति
कर्मों से अथवा प्रमाद से रहित हैं ।
स्वयं रागद्वेष के जीतने वाले हैं,
दूसरों को जिताने वाले हैं,
स्वयं संसार-सागर से तर गए हैं,
दूसरों को तारनेवाले हैं, स्वयं बोध पा चुके हैं,
दूसरों को बोध देनेवाले हैं, स्वयं कर्म से-मुक्त हैं, दूसरों
को मुक्त कराने वाले हैं।
पढिये - थावच्चा पुत्र की कहानी (जैन कहानी)
सर्वज्ञ हैं, सर्वदर्शी हैं, तथा शिव-कल्याणरूप अचल-स्थिर अरुज-रोग रहित, अनन्तअन्तरहित, अक्षय, क्षयरहित, अव्यावाध-पीड़ा से रहित, अपुनरावृत्ति-पुनरगमन से रहित
अर्थात् जन्म-मरण से रहित सिद्ध-गति नामक
स्थान को प्राप्त कर चुके हैं, भय को जीतने
वाले हैं, रागद्वेष को जीतने वाले हैं-उन जिन
भगवानों को मेरा नमस्कार हो ।
जानिये - जैन धर्म में वर्णित 9 पुण्य
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