जैन धर्म में सिद्ध कौन होते है ?

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जैन धर्म में 'सिद्ध' भगवान होते है ।

सिद्ध प्रभु

सिद्ध प्रभु ' नमो सिद्धांण ' द्वारा पूजित होते है तथा उन्हे आदर सहित " नमो सिद्धांण " बोलकर नमस्कार किया जाता है ।

जैन धर्म में सिद्ध वें होते है -

1. जिन्होने अपने समस्त अष्ट कर्मो का क्षय कर दिया होता है ।
2. जो राग , द्वेष आदी विकारो से मुक्त होते है ।
3. जो सिद्ध शीला में विराजमान होते है ।
4. जो भूख , प्यास , शीत , गर्मी आदि से विचलित नही होते ।
5. सिद्ध प्रभु अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत सुख, क्षायिक सम्यक्तव , अटल अवगाहना , अरूपी , अगुरुलघुता और अनंत बल आदि अष्ट महागुणो के धारक होते है ।
6. जो नवकार मंत्र में द्वितिय पद पर वंदनीय होते है ।
7. जो कभी भी जन्म नही लेते और न ही मृत्यु को प्राप्त करते है अर्थात् यह जन्म - मरण के बंधन से रहित होते है ।
8. सिद्ध अवस्था निर्वाण कि अवस्था है ।
9. आत्मा का शुद्ध रूप शरीर के बिना, अशरीरी आत्मा,  शुद्ध रूप अवस्था सिद्ध प्रभु की है ।
10. जो नवकार मंत्र में द्वितिय पद पर नमस्कार किये जाते है , सिद्ध प्रभु कहलाते है ।

जैन धर्म के समस्त वर्तमान और भूतकाल के चौबीसी के तीर्थंकर वर्तमान काल में प्रथम तीर्थंकर त्रषभदेव जी से लेकर 24 वें तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी जी तक तथा 24 तीर्थंकरो के 1454 गणधर प्रभु जिन्होने भी निर्वाण प्राप्त किया है , वह सभी ' सिद्ध प्रभु ' है । सिद्ध अवस्था जैन धर्म में सबसे सर्वोच्च है और प्रत्येक आत्मा का लक्ष्य जन्म - मरण के बंधन से रहित होकर निर्वाण पाना हि है । वह भव्य आत्माएं जो जन्म - मरण के चक्र से रहित हो कर निर्वाण प्राप्त कर लेती है , वह सिद्ध कहलाती है तथा उन्हे ' नमों सिद्धांण ' बोल कर नमस्कार किया जाता है ।

अगर कोई त्रुटी हो तो ' मिच्छामी दुक्कडम '.

" जय जिनेन्द्र " 

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" जय जिनेन्द्र "

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