जैन धर्म में अरिहंत कौन होते है ?

Abhishek Jain
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जैन धर्म में अरिहंत कौन होते है ?

जैन धर्म में अरिहंत भगवान  होते है ।

अरिहंत भगवान

जैन धर्म में अरिहंत वे होते है -:

  • 1. जिन्होने अपने जीवन में अष्ट कर्मो में से चार घाती कर्मो का नाश कर दिया होता है तथा उनके चार घनघाती कर्म शेष होते है ।
  • 2. जिन्हे केवलज्ञान कि प्राप्ती हो जाती है ।
  • 3. जो पाँच ज्ञान के धारक हो जाते है ।
  • 4. अरिहंत भगवान अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त चरित्र, अनन्त तप और आठ महाप्रतिहार्य युक्त आदि बारह (12) गुणो के धारक होते है ।
  • 5. जो नवकार मंत्र में सर्वप्रथम नमस्कार योग्य होते है ।
  • 6. जो समस्त जगत के ज्ञाता दृष्टा होते है ।
  • 7. जिनका ज्ञान असीम होता है ।
  • 8. जिनका बल अतुलनीय होता है ।
  • 9. जिनके लिए सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड हथेली पर ऑवले सृदश होता है ।
  • 10. जो खुद तरने वाले होते है तथा दुसरो को तारणे में समर्थ होते है ।


ऐसा न जाने अन्नता-अन्नत गुणो से युक्त विभूती अरिहंत कहलाते है ।

जैन धर्म में प्रत्येक सामन्य केवली जो तीर्थंकर प्रभु से भिन्न होता है , वह भी नमो अरिहंताणं में वंदनीय होता है ।


सामान्य केवली और तीर्थंकर प्रभु में वैसे तो कई अंतर होते है परन्तु इनमें मुख्य अंतर तीर्थो की स्थापना का होता है , तीर्थंकर महाप्रभु केवलय ज्ञान के पश्चात तीर्थं की स्थापना करते है और सामन्य केवली कभी भी तीर्थ की स्थापना नही करते ।


प्रत्येक तीर्थंकर मोक्ष (सिद्ध अवस्था) पाने से पहले केवल्य ज्ञान प्राप्त कर अरिहंत बनते है ।


इसलिए नवकार मंत्र में सर्वप्रथम 'नमो अरिहंताणं' बोला जाता है ।

वर्तमान में भी जैन धर्म के 20 विहरमान तीर्थंकर महाविदेह क्षेत्र में मौजूद है , जो वर्तमान समय में अरिहंत है । हम जो भी व्रत , सामायिक आदि ग्रहण करते है , वह श्री सिमंधर स्वामी जी की आज्ञा से हि करते है । श्री सिमंधर स्वामी जी महाविदेह क्षेत्र के प्रथम तीर्थंकर है । वर्तमान अरिहंत श्री सिमंधर स्वामी जी है ।


"श्री सिमंधर स्वामी जी की जय "

अगर कोई त्रुटी हो तो ' मिच्छामी दुक्कडम '.

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