जैन धर्म में अरिहंत वे होते है -: 1. जिन्होने अपने जीवन में अष्ट कर्मो में से चार घाती कर्मो का नाश कर दिया होता है तथा उनके चार घनघाती कर्म शेष ....
जैन धर्म में अरिहंत भगवान होते है ।
जैन धर्म में अरिहंत वे होते है -:
1. जिन्होने अपने जीवन में अष्ट कर्मो में से चार घाती कर्मो का नाश कर दिया होता है तथा उनके चार घनघाती कर्म शेष होते है ।
2. जिन्हे केवलज्ञान कि प्राप्ती हो जाती है ।
3. जो पाँच ज्ञान के धारक हो जाते है ।
4. अरिहंत भगवान अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त चरित्र, अनन्त तप और आठ महाप्रतिहार्य युक्त आदि बारह (12) गुणो के धारक होते है ।
5. जो नवकार मंत्र में सर्वप्रथम नमस्कार योग्य होते है ।
6. जो समस्त जगत के ज्ञाता दृष्टा होते है ।
7. जिनका ज्ञान असीम होता है ।
8. जिनका बल अतुलनीय होता है ।
9. जिनके लिए सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड हथेली पर ऑवले सृदश होता है ।
10. जो खुद तरने वाले होते है तथा दुसरो को तारणे में समर्थ होते है ।
ऐसा न जाने अन्नता-अन्नत गुणो से युक्त विभूती अरिहंत कहलाते है ।
जैन धर्म में प्रत्येक सामन्य केवली जो तीर्थंकर प्रभु से भिन्न होता है , वह भी नमो अरिहंताणं में वंदनीय होता है ।
सामान्य केवली और तीर्थंकर प्रभु में वैसे तो कई अंतर होते है परन्तु इनमें मुख्य अंतर तीर्थो की स्थापना का होता है , तीर्थंकर महाप्रभु केवलय ज्ञान के पश्चात तीर्थं की स्थापना करते है और सामन्य केवली कभी भी तीर्थ की स्थापना नही करते ।
प्रत्येक तीर्थंकर मोक्ष(सिद्ध अवस्था) पाने से पहले केवल्य ज्ञान प्राप्त कर अरिहंत बनते है ।
इसलिए नवकार मंत्र में सर्वप्रथम 'नमो अरिहंताणं' बोला जाता है ।
वर्तमान में भी जैन धर्म के 20 विहरमान तीर्थंकर महाविदेह क्षेत्र में मौजूद है , जो वर्तमान समय में अरिहंत है । हम जो भी व्रत , सामायिक आदि ग्रहण करते है , वह श्री सिमंधर स्वामी जी की आज्ञा से हि करते है । श्री सिमंधर स्वामी जी महाविदेह क्षेत्र के प्रथम तीर्थंकर है । वर्तमान अरिहंत श्री सिमंधर स्वामी जी है ।
"श्री सिमंधर स्वामी जी की जय "
अगर कोई त्रुटी हो तो ' मिच्छामी दुक्कडम '.
" जय जिनेन्द्र "
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" जय जिनेन्द्र "
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