भगवान धर्मनाथ जी का जीवन परिचय

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भगवान धर्मनाथ जी जैन धर्म के 15वें तीर्थंकर थे । प्रभु धर्मनाथ जी का जन्म कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा के दिन श्रावस्ती नगरी में इक्ष्वाकु कुल में हुआ था । प्रभु धर्मनाथ जी के पिता का नाम भानू तथा माता का नाम सुव्रता था,प्रभु की देह का वर्ण स्वर्ण और इनका प्रतिक चिह्न वज्र था ।

प्रभु धर्मनाथ जी की आयु 25,00,000 वर्ष थी । प्रभु के देह की ऊंचाई 45 धनुष थी । भगवान धर्मनाथ ने माघ शुक्ल त्रियोदशी के दिन गृह त्याग कर दीक्षा ग्रहण की प्रभु का साधना काल एक वर्ष का था । एक वर्ष पश्चात पौष शुक्ल पुर्णिमा के दिन प्रभु को निर्मल कैवलय ज्ञान की प्राप्ती हुई ।

प्रभु पाँच ज्ञान के धारक हो गये , इसके पश्चात प्रभु ने साधु, साध्वी व श्रावक, श्राविका नामक चार तीर्थो को स्थापित किया और चार तीर्थो की स्थापना करने के कारण स्वयं तीर्थंकर कहलाये । 

प्रभु ने चैत्र शुक्ल छठ को सम्मेद शिखरजी से मोक्ष प्राप्त किया , प्रभु का निर्वाण हो गया और प्रभु अरिहंत से सिद्ध कहलाये ।

" प्रभु धर्मनाथ जी की जय "

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" जय जिनेन्द्र "

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