तीर्थंकर मुनिसुव्रत जी चालीसा

Abhishek Jain
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प्रभु मुनिसुव्रतनाथ जी जैन धर्म के 20 वें तीर्थंकर है । मुनिसुव्रतनाथ जी का जन्म कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को राजगृही में हुआ था । प्रभु के पिता का नाम सुमित्र तथा माता का नाम पद्मावती था । प्रभु के शरीर का वर्ण श्याम (काला) था तथा प्रभु मुनिसुव्रतनाथ जी का प्रतीक चिह्न कछुआ था ।

तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रत जी

तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रत चालीसा

अरिहंत सिद्ध आचार्य को निसदिन करुं प्रणाम |
उपाध्याय सर्वसाधू जी करें स्वपर कल्याण ||
प्रभु मुनिसुव्रतनाथ का मंदिर पावन धाम |
श्याम वर्ण अद्भूत प्रतिमा को कोटि-कोटि प्रणाम ||
जय मुनिसुव्रत दया के सागर, नाम प्रभु का लोक उजागर ||
राजा सुमित्रा के तुम नन्दा, मां शामा की आंखो के चन्दा ||
श्यामवर्ण प्रभू मूरत प्यारी, स्तुति करें निशदिन नर नारी ||
मुनिसुव्रत हो अन्तरयामी, लोका लोक जगत हितकारी ||
जो तुम भक्ति निशदिन करता, पाप ताप भय संकट-हरता ||
संकटमोचन नाम तुम्हारा, दीन दुखी तुम ही का सहारा ||
कोई दरिद्री या तन का रोगी, प्रभू दर्शन से होते निरोगी ||
मिथ्या तिमिर भयो अति भारी, भव की बाधा हरो हमारी ||
यह संसार महा दुख दाई, सुख दुख की गहरी हैं खाई ||
मोह जाल में फंसा है बंदा, काटो प्रभु भव भव का फंदा ||
रोग शोक भय व्याधि मिटावो, भव सागर से पार लगावो ||
अशुभ कर्म से अब तक भटका, मोह माया बन्धन में अटका ||
योग-वियोग और भव का नाता, राग द्वेष जग में भटकाता ||
हित मित प्रिय प्रभू तुमरी वाणी, जग कल्याण करो मुनि ध्यानी ||
भव सागर में नाव हमारी, पार करो प्रभु विरद हमारी ||
अब विवेक मेरा हैं जागा, दर्शन करत कर्ममल भागा ||
नाम आपका जपे जो कोई, तीन लोक की सम्पदा पाई ||
कृपा दृष्टी जब आपकी होवे, धन आरोग्य समृधि पावे ||
प्रभु चरणन में जो कोई आवे, मनवांच्छित फल तुमसे पावे ||
चमत्कार प्रभु आपका न्यारा, संकट मोचन नाम तुम्हारा ||
तुम सर्वज्ञ चतुष्टय धारी, मन वच तन वंदना हमारी ||
गिरी सम्मेद से मोक्ष सिधारे, आया अब मैं शरण तिहांरे ||
महाराष्ट्र का पैठण तीर्थ, अतिशय क्षेत्र की अद्भूत कीरत ||
मन्दिर की रचना है न्यारी, वीतराग प्रतिमा सुखकारी ||
श्याम वर्ण मूर्ति है निराली, मुनिसुव्रत की छवि है प्यारी ||
मानस्तंभ की शोभा न्यारी, देखत मान कषाय निवारी ||
मुनिसुव्रत शनिग्रह अधिष्ठाता, दुख संकट हरे दे सुख साता ||
शनि अमावस की महिमा भारी, दर्शन को आते नर नारी ||
मुनिसुव्रत दर्शन हितकारी, मन वच तन वंदना हमारी ||
मुनिसुव्रत दर्शन हितकारी, मन वच तन वंदना हमारी ||
सोरठा
प्रभु मुनिसुव्रत का चालीसा, नित प्रीत पढ़े जो कोय |
पावे भौतिक सम्पदा, सुख दुःख बन्ध न होय ||


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