Bhaktamar Stotra Shloka-8 With Meaning

Abhishek Jain
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Bhaktamar Stotra Shloka-8 With Meaning

भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म का महान प्रभावशाली स्तोत्र है । इस स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंग ने की थी । इस स्तोत्र की रचना संस्कृत भाषा में हुई थी , जो इस स्तोत्र की मूल भाषा है, परन्तु यदी आपको संस्कृत नही आती तो आपकी सुविधा के लिए Bhaktamar Stotra के श्र्लोको (Shloka) को हमने मूल अर्थ के साथ - साथ हिन्दी में अनुवादित करते हुये उसका अर्थ भी दिया है , साथ हि साथ जिन लोगो को English आती है और संस्कृत नही पढ सकते वह सधार्मिक बंधु भी English मे Bhaktamar stotra का पाठ कर सकते है । इस प्रकार से Bhaktamar Stotra Shloka-8 With Meaning की सहायता से आप आसानी से इस स्तोत्र का पाठ कर सकते है ।

चाहे भाषा कोई भी हो हमारी वाणी से श्री आदीनाथ प्रभु का गुणगाण होना चाहिए । नित्य प्रातः काल मे पूर्ण शुद्धता के साथ श्री भक्तामर स्तोत्र का पाठ अवश्य करें ।

Bhaktamar Stotra Shloka-8

Bhaktamar Stotra Shloka - 8

सर्वारिष्ट निवारक

(In Sanskrit)

मत्वेति नाथ तव संस्तवनं मयेद-

मारभ्यते तनुधियापि तव प्रभावात् ।

चेतो हरिष्यति सतां नलिनी-दलेषु,

मुक्ताफल-द्युति-मुपैति ननूद-बिन्दुः ॥8॥

(In English)

matveti nath! tav sanstavanam mayeda -

marabhyate tanudhiyapi tava prabhavat |

cheto harishyati satam nalinidaleshu

muktaphala - dyutimupaiti nanudabinduh || 8 ||

Explanation (English)

I begin this eulogy with the belief that, though 

composed by an ignorant like me, it will certainly 

please noble people due to your magnanimity. Indeed, dew 

drops on lotus-petals lustre like pearls presenting a 

pleasant sight.

(हिन्दी में )

तव प्रभाव तें कहूँ विचार, होसी यह थुति जन-मन-हार |

ज्यों जल कमल-पत्र पे परे, मुक्ताफल की द्युति विस्तरे ||८||

(भक्तामर स्तोत्र के आठवें श्लोक का अर्थ )

हे स्वामिन्! ऐसा मानकर मुझ मन्दबुद्धि के द्वारा भी आपका यह स्तवन प्रारम्भ किया जाता है, जो आपके प्रभाव से सज्जनों के चित्त को हरेगा| निश्चय से पानी की बूँद कमलिनी के पत्तों पर मोती के समान शोभा को प्राप्त करती हैं |


" भगवान ऋषभदेव जी की जय "


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