श्री कुंथुनाथ भगवान की आरती
श्री कुंथुनाथ प्रभु की, हम आरति करते हैं, आरति करके जनम-जनम के पाप विनशते हैं, सांसारिक सुख के संग आत्मिक सुख भी मिलते हैं, श्री कुंथुनाथ प्रभु की, हम आरति करते हैं॥टेक.॥
जब गर्भ में प्रभु तुम आए-हां आए, पितु सूरसेन श्रीकांता माँ हरषाए। सुर वन्दन करने आए-हां आए, श्रावण वदि दशमी गर्भकल्याण मनाएं। हस्तिनापुरी की उस पावन, धरती को नमते हैं, आरति करके ……………….॥१॥
वैशाख सुदी एकम में-एकम में, जन्मे जब सुरगृह में बाजे बजते थे। सुरशैल शिखर ले जाकर-ले जाकर, सब इन्द्र सपरिकर करें न्हवन जिनशिशु पर। जन्मकल्याणक से पावन, उस गिरि को जजते हैं, आरति करके ……………….॥२॥
फिर बारह भावना भाई-हां भाई,| वैशाख सुदी एकम दीक्षा तिथि आई। लौकान्तिक सुरगण आए-हां आए, वैराग्य प्रशंसा द्वारा प्रभु गुण गाएं। उन मनपर्ययज्ञानी मुनि को, शत-शत नमते हैं, आरति करके ……………….॥३॥
केवलरवि था प्रगटा-हां प्रगटा, प्रभु समवसरण रच गया अलौकिक जो था। दिव्यध्वनि पान करे जो-हां करे जो, भववारिधि से तिर निज कल्याण करे वो। चार कल्याणक भूमि हस्तिनापुर को नमते हैं, आरति करके ……………….॥४॥
वैशाख सुदी एकम तिथि- हां एकम तिथि, मुक्तिश्री नामा इक प्रियतमा वरी थी। सम्मेदशिखर गिरि पावन-हां पावन, प्रभुवर ने पाया मोक्षधाम मनभावन॥ उसी धाम की चाह चंदनामति, हम करते हैं। आरति करके ……………….॥५॥
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" जय जिनेन्द्र "
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