Bhaktamar Stotra Shloka-38 With Meaning

Abhishek Jain
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Bhaktamar Stotra Shloka-38 With Meaning 

भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म का महान प्रभावशाली स्तोत्र है । इस स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंग ने की थी । इस स्तोत्र की रचना संस्कृत भाषा में हुई थी , जो इस स्तोत्र की मूल भाषा है, परन्तु यदी आपको संस्कृत नही आती तो आपकी सुविधा के लिए Bhaktamar Stotra के श्र्लोको (Shloka) को हमने मूल अर्थ के साथ - साथ हिन्दी में अनुवादित करते हुये उसका अर्थ भी दिया है , साथ हि साथ जिन लोगो को English आती है और संस्कृत नही पढ सकते वह सधार्मिक बंधु भी English मे Bhaktamar stotra का पाठ कर सकते है । इस प्रकार से Bhaktamar Stotra Shloka-38 With Meaning की सहायता से आप आसानी से इस स्तोत्र का पाठ कर सकते है ।

चाहे भाषा कोई भी हो हमारी वाणी से श्री आदीनाथ प्रभु का गुणगाण होना चाहिए । नित्य प्रातः काल मे पूर्ण शुद्धता के साथ श्री भक्तामर स्तोत्र का पाठ अवश्य करें ।

Bhaktamar Stotra Shloka-38

Bhaktamar Stotra Shloka - 38

हाथी भय निवारक

(In Sanskrit)

श्च्योतन-मदा-विल-विलोल-कपोल-मूल-

मत्त-भ्रमद-भ्रमर-नाद विवृद्ध-कोपम् ।

ऐरावताभ-मिभ-मुद्धत-मापतंतं,

दृष्टवा भयं भवति नो भवदा-श्रितानाम् ॥38॥

(In English)

shchyotanmadavilavilola-kapolamula

mattabhramad -bhramaranada - vivriddhakopam |

airavatabhamibhamuddhatamapatantan

drisht va bhayam bhavati no bhavadashritanam || 38 ||

Explanation (English)

O Tirthanakara! The devotees who have surrendered to 

you are not scared even of a wild elephant being 

incessantly annoyed by humming bees. They are always 

and everywhere fearless as the silence of their deep 

meditation placates even the most brutal of the beings.

(हिन्दी में )

मद-अवलिप्त-कपोल-मूल अलि-कुल झँकारें |

तिन सुन शब्द प्रचंड क्रोध उद्धत अति धारें ||

काल-वरन विकराल कालवत् सनमुख आवे |

ऐरावत सो प्रबल सकल जन भय उपजावे ||

देखि गयंद न भय करे, तुम पद-महिमा लीन |

विपति-रहित संपति-सहित, वरतैं भक्त अदीन ||३८||

(भक्तामर स्तोत्र के 38 वें श्लोक का अर्थ )

आपके आश्रित मनुष्यों को, झरते हुए मद जल से जिसके गण्डस्थल मलीन, कलुषित तथा चंचल हो रहे है और उन पर उन्मत्त होकर मंडराते हुए काले रंग के भौरे अपने गुजंन से क्रोध बढा़ रहे हों ऐसे ऐरावत की तरह उद्दण्ड, सामने आते हुए हाथी को देखकर भी भय नहीं होता|


" भगवान ऋषभदेव जी की जय "


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