Bhaktamar Stotra Shloka-39 With Meaning

Abhishek Jain
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 Bhaktamar Stotra Shloka-39 With Meaning

भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म का महान प्रभावशाली स्तोत्र है । इस स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंग ने की थी । इस स्तोत्र की रचना संस्कृत भाषा में हुई थी , जो इस स्तोत्र की मूल भाषा है, परन्तु यदी आपको संस्कृत नही आती तो आपकी सुविधा के लिए Bhaktamar Stotra के श्र्लोको (Shloka) को हमने मूल अर्थ के साथ - साथ हिन्दी में अनुवादित करते हुये उसका अर्थ भी दिया है , साथ हि साथ जिन लोगो को English आती है और संस्कृत नही पढ सकते वह सधार्मिक बंधु भी English मे Bhaktamar stotra का पाठ कर सकते है । इस प्रकार से Bhaktamar Stotra Shloka-39 With Meaning की सहायता से आप आसानी से इस स्तोत्र का पाठ कर सकते है ।

चाहे भाषा कोई भी हो हमारी वाणी से श्री आदीनाथ प्रभु का गुणगाण होना चाहिए । नित्य प्रातः काल मे पूर्ण शुद्धता के साथ श्री भक्तामर स्तोत्र का पाठ अवश्य करें ।

Bhaktamar Stotra Shloka-39

Bhaktamar Stotra Shloka - 39

सिंह भय निवारक

(In Sanskrit)

भिन्नेभ-कुम्भ-गल-दुज्ज्वल-शोणिताक्त-

मुक्ताफल-प्रकर-भूषित-भूमिभागः ।

बद्ध-क्रमः क्रम-गतं हरिणा-धिपोपि,

नाक्रामति क्रम-युगाचल-संश्रितं ते ॥39॥

(In English)

bhinnebha - kumbha - galadujjavala - shonitakta,

muktaphala prakara - bhushita bhumibhagah |

baddhakramah kramagatam harinadhipoapi,

nakramati kramayugachalasanshritam te || 39 ||

Explanation (English)

A lion who has torn apart elephant's head with blood flowing under, scattering blood stained pearls on the ground, ready to pounce with growling sound, If your devotee falls in his grasp, and has firm faith in you, even the lion will not touch the devotee.

(हिन्दी में )

अति मद-मत्त गयंद कुंभ-थल नखन विदारे |

मोती रक्त समेत डारि भूतल सिंगारे ||

बाँकी दाढ़ विशाल वदन में रसना लोले |

भीम भयानक रूप देख जन थरहर डोले ||

ऐसे मृग-पति पग-तले, जो नर आयो होय |

शरण गये तुम चरण की, बाधा करे न सोय ||३९||

(भक्तामर स्तोत्र के 39 वें श्लोक का अर्थ )

सिंह, जिसने हाथी का गण्डस्थल विदीर्ण कर, गिरते हुए उज्ज्वल तथा रक्तमिश्रित गजमुक्ताओं से पृथ्वी तल को विभूषित कर दिया है तथा जो छलांग मारने के लिये तैयार है वह भी अपने पैरों के पास आये हुए ऐसे पुरुष पर आक्रमण नहीं करता जिसने आपके चरण युगल रुप पर्वत का आश्रय ले रखा है|


" भगवान ऋषभदेव जी की जय "


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