भगवान महावीर की साधना

Abhishek Jain
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भगवान महावीर की साधना

भगवान महावीर की साधना सत्य की साधना थी, यह साधना काल का सफर प्रभु के वर्द्धमान से महावीर बनने का सफर था । प्रभु महावीर के दीक्षा लेने से लेकर प्रभु के ज्ञान प्राप्ती तक की यात्रा में प्रभु को लगभग साढ़े बारह वर्षों का समय लगा । धरती धीर महावीर ने अनेक कष्टो को सहा । प्रभु के साधना काल की प्रमुख घटनाये निम्नलिखत है।



भगवान महावीर की साधना


भगवान महावीर की दीक्षा

भगवान महावीर ने 30 वर्ष की आयु में दीक्षा ग्रहण की, दीक्षा के वक्त प्रभु महावीर के पास एकमात्र देवदुष्य वस्त्र था ।

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भगवान महावीर द्वारा वस्त्र को त्यागना

प्रभु ने 13 माह तक वस्त्र धारण किया उसके पश्चात् प्रभु ने वह वस्त्र सोम शर्मा नामक बाह्मण को दिया था ।

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इंद्र की सहायता को अस्वीकार करना

दीक्षा के अगले दिन प्रभु ध्यानमगन थे , तभी वहा एक ग्वाला आया और उसने प्रभु को अपने बैल की रक्षा के लिए कहा जब वह लौटा तब वहा उसके बैल नही थे, उसे प्रभु पर क्रोध आया और वह रस्सी लेकर प्रभु को मारने के लिए दौडा तभी वहा इन्द्र देव ने आकर ग्वाले को रोका। इन्द्र देव ने प्रभु कि साहयता कि प्रार्थना कि तो प्रभु ने इसे अस्वीकार कर दिया । प्रभु ने कहा मुक्ति केवल स्वयं के प्रयास से हि संभव है ।

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यक्ष का उपसर्ग

वेगवती नदी के किनारे एक गांव में शुलपाणी नाम का भंयकर यक्ष रहता था, उस यक्ष का आतंक इतना था कि कोई भी डर के मारे उस गांव मे रात नही बिताता था, गांव के मंदिर में यक्ष का निवास था। एक दिन भगवान महावीर वहां संध्या के समय वहा पधारे लोगो ने कहा महात्मा इस गांव में भयंकर यक्ष रहता है, आप यहा न रुके जो भी यहां ठहरता है यक्ष उसे मार देता है ।

भगवान अभय थे , प्रभु मुस्कुराये और गांव के अंदर चल दिये । यक्ष अपने स्वभाव अनुसार प्रभु को यातना देने के लिए पहुंच गया ,यक्ष ने भंयकर गर्जना की परन्तु धरती धीर महावीर के ध्यान में तनिक भी अंतर नही आया । उस यक्ष ने रात भर प्रभु को उपसर्ग दिये, भौर के समय वह यक्ष पानी - पानी हो गया । यक्ष को अपनी गलती पर पछतावा होने लगा । महावीर प्रभु ने कहा अहिंसा हि शांती का मार्ग है। उस यक्ष ने आगे से कभी भी किसी जीव को न सताने का वचन दिया ।

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भगवान महावीर और चंड कौशिक

भगवान महावीर अंबिका नगरी कि तरफ बढ़े, वहा से मार्ग जंगल में दो रास्तो में बंट गया । किसी राहगीर ने प्रभु महावीर को बताया कि पहला रास्ता बड़ा है परंतु सुरक्षित है परंतु यह दूसरा मार्ग छोटा होने के साथ-साथ ही खतरनाक भी है इस मार्ग में चंड कौशिक नाम का भयंकर विषधर रहता है उसकी दृष्टि मात्र से ही व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है भगवान महावीर मुस्कुराए और उस छोटे और मुश्किल रास्ते की तरफ बढ़ दिए।

प्रभु महावीर रास्ते से जा रहे थे तभी भयंकर विषधर चंड कौशिक ने उनकी तरफ देखा। चंड कौशिक ने अपना दृष्टि विष भगवान महावीर की तरफ डाला , परन्तु ये क्या ? विषधर के विष का कोई प्रभाव हि नही हुआ। चंड कौशिक ने अपने क्रोध के वश हो प्रभु के अंगुठे पर दंश किया । परंतु यह क्या आश्चर्य ! अंगूठे मे लाल रक्त की जगह दूध की धारा बह निकली।

चंडकौशिक का सारा घमंड चूर चूर हो गया फिर भगवान महावीर ने सांत्वना भरी वाणी में कहा "शांत चंड कौशिक शांत तुम्हारे क्रोध के कारण ही तुम अपना फल भुगत रहे हो, अपने पूर्व जन्मों मे भी तुमने क्रोध के कारण अपना जन्म गवा दिया था अब इससे शांति और अहिंसा में लगाओ निरापराध प्राणियों का वध बंद कर दो" ।

प्रभु की सांत्वना भरी वाणी को सुनकर चंड कौशिक शांत हो गया । उसने हिंसा का मार्ग त्याग दिया और प्रत्येक जीव को अभयदान दिया। प्रभु महावीर चंद कौशिक के कल्याण के लिए ही आए थे उनहोने जीवो की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया ।

जिस दिन चंड कौशिक नाग की मृत्यु हुई,लोगों ने दूध से उसका अभिषेक किया जैन मान्यतानुसार यही दिन नाग पंचमी कहलाया।

जानिये - भगवान महावीर और चंड कौशिक जैन कहानी 


राक्षसी कटपूतना और प्रभु महावीर

घटना भगवान महावीर के छठे वर्ष की है, प्रभु महावीर माघ के महीने में भयंकर सर्दी में एक वृक्ष के नीचे ध्यान मान खड़े थे,छतरी में एक राक्षसी कटपूतना वहां आई,अपने राक्षसी स्वभाव के कारण उसने प्रभु को यातना देने का सोचा। उसने प्रभु महावीर पर ठंडे जल की वर्षा की,भयंकर सर्दी में ठंडा जल उसमें पूरी रात्रि प्रभु के ऊपर बरसाया प्रभु महावीर इंच मात्र भी इधर से उधर नहीं हुए। जब वह राक्षसी थक हार गई तो उसने प्रभु से क्षमा याचना कि ,क्षमाशील महावीर ने उसे क्षमा कर दिया ।


आदिवासियों के बीच प्रभु महावीर

भगवान महावीर ने अपने वर्षवास का नौवां वर्ष आदिवासीयो के बीच बिताया था । कभी उन्हे आदिवासीयो ने धक्का दिया , कभी सूखी रोटी दी । कभी- कभी ध्यान करते महावीर प्रभु पर मिट्टी उछाल देते थे । प्रभु 6 मास तक आदिवासीयो के बीच रहें और उन्हे अपने धर्म से प्रभावित किया । जब प्रभु ने वहां से विहार किया अधिकांश आदिवासी शुद्ध बुद्धि के हो गये थे ।


संगम देव के उपसर्ग

भगवान महावीर को सबसे ज्यादा कष्ट संगम देव ने ही दिये थे । संगम देव ने प्रभु को 6 माह तक कष्ट दिया था । सबसे कठिन उपसर्ग में संगम देव ने एक हि रात में 20 उपसर्ग दिये थे । प्रभु सभी कष्टो को हसते हुए सह गये। अतंत संगम देव ने प्रभु से अपने दृष्कृत्य के लिए क्षमा मांग ली । क्षमाशील महावीर ने उन्हे क्षमा कर दिया ।

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भगवान महावीर और चंदनबाला

यह कहानी प्रभु महावीर के सबसे बड़े तप से जुडी है चंदन बाला की कहानी प्रभु के साधना काल के 12 वें वर्ष में घटी थी । प्रभु ने 6 मास का उपवास (अभिग्रह) किया जिसमे असंभव 13 प्रतिज्ञाये थी । प्रभु का यह अभिग्रह 5 महिने और 25 दिन बाद पूरा होता है, जब चंदनबाला द्वारा प्रभु भिक्षा ग्रहण करते है ।

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प्रभु के कानों में कीलें

यह उपसर्ग प्रभु महावीर के साधना काल का अतिंम उपसर्ग था । प्रभु को पहला उपसर्ग देने वाला भी ग्वाला था और अतिंम उपसर्ग भी ग्वाले द्वारा हि दिया गया था । कहानी इस प्रकार से है कि एक दिन प्रभु महावीर ध्यानस्थ थे,तभी वहां एक ग्वाला आया और उसने कहा आप मेरे बैलों का ध्यान रखें मैं बाद में आकर इन्हें ले लूंगा पर जब शाम को लौट कर ग्वाला वापस आता है तो वहां पर उसे अपनी बैल दिखाई नहीं देते इस पर वह क्रुद्ध होकर प्रभु महावीर के कानों में कीले ठोक देता है।

अगले दिन जब प्रभु महावीर भिक्षा के लिए जाते हैं तो दो वैद कुमार उनकी पीड़ा को देख लेते हैं और जब भगवान महावीर ध्यान मगन होते हैं, तब वह उनके कानो से किलो को निकाल देते हैं, भगवान महावीर के कानों से खून की धारा बह निकलती है इतने बड़े अपार कष्ट को वह हंसकर सहन कर लेते हैं।

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भगवान महावीर को केवलज्ञान प्राप्ति

भगवान महावीर की साधना 12.5 वर्ष तक जारी रही। साधना के दौरान भगवान ने अपार कष्टों को सहन किया। वैशाख शुक्ल दशमी के दिन प्रभु महावीर ने केवल ज्ञान को प्राप्त किया। उस दिन प्रभु महावीर चार घनघाती कर्मों का क्षय कर अरिहंत कहलाए

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