जैन धर्म के 24 तीर्थंकर: नाम, प्रतीक चिह्न और उनका महत्व
जैन धर्म में 24 तीर्थंकर माने गये हैं। जिसमें से भगवान ऋषभदेव जी प्रथम तीर्थंकर व भगवान महावीर 24 वें तीर्थंकर हैं। जैन धर्म में तीर्थंकर एक सर्वोच्च पद होता है, जिस पर अति पुण्यशाली आत्मा विराजमान होती है, अर्थात् तीर्थंकर बनती है। तीर्थंकर नामकर्म गोत्र उपार्जन के जैन धर्म में बीस स्थानक बताये गये हैं।
जैन धर्म में मान्यतानुसार एक अवसर्पिणी काल में 24 तथा उत्सर्पिणी काल में 24 तीर्थंकर होते हैं। इस प्रकार उत्सर्पिणी व अवसर्पिणी काल के मिलाकर एक आरा बनता है। एक काल के 6 भाग होते हैं, इस प्रकार दोनों काल के 6-6 भाग मिलाने पर एक आरे का निमार्ण होता है।
जैन मान्यतानुसार आज तक अनेकों तीर्थंकर जन्म ले चुके हैं और आगे भी अनेकों तीर्थंकर होंगे, पर एक काल में सिर्फ 24 तीर्थंकर ही होते हैं। प्रत्येक तीर्थंकर की माता प्रभु के जन्म से पूर्व 14/16 दिव्य स्वप्न देखती है।
💡 महत्वपूर्ण - जैन धर्म में तीर्थंकर क्या होते हैं?
वर्तमान काल के 24 तीर्थंकरों के नाम
- भगवान ऋषभदेव जी
- भगवान अजितनाथ जी
- भगवान संभवनाथ जी
- भगवान अभिनंदन स्वामी जी
- भगवान सुमतिनाथ जी
- भगवान पद्मप्रभु जी
- भगवान श्री सुपार्श्वनाथ जी
- भगवान चंदाप्रभु जी
- भगवान सुविधनाथ जी
- भगवान शीतलनाथ जी
- भगवान श्रेयांसनाथ जी
- भगवान वासुपूज्य जी
- भगवान विमलनाथ जी
- भगवान अनंतनाथ जी
- भगवान धर्मनाथ जी
- भगवान शांतीनाथ जी
- भगवान कुंथुनाथ जी
- भगवान अरहनाथ जी
- भगवान मल्लीनाथ जी
- भगवान मुनीसुव्रत जी
- भगवान नेमीनाथ जी
- भगवान अरिष्टनेमी जी
- भगवान पार्श्वनाथ जी
- भगवान महावीर स्वामी जी
📌 जानिये - जैन धर्म में विहरमान-तीर्थंकर क्या होते हैं?
ये जैन धर्म के अरिहंत भगवान होते हैं तथा मोक्ष (निर्वाण) प्राप्त कर लेने पर सिद्ध भगवान कहलाते हैं। जैन धर्म के तीर्थंकर 34 अतिशय युक्त होते हैं तथा उनकी वाणी में 35 गुण होते हैं। प्रत्येक तीर्थंकर महाप्रभु के बांये पैर के अंगूठे के समीप एक लक्षण चिह्न पाया जाता है जिससे उनकी मूर्तियों की पहचान कि जाती है। भगवान ऋषभदेव का प्रतीक चिह्न बैल था तथा प्रभु महावीर स्वामी का प्रतीक चिह्न सिंह था।
तीर्थंकर भगवान असीम बल के धारक होते हैं। वह जन्म से तीन ज्ञान (श्रुतज्ञान, मतिज्ञान, अवधिज्ञान) युक्त होते हैं, दीक्षा के समय उन्हें मनः पर्याय ज्ञान होता है तथा अंत में चार घाती कर्मों का क्षय कर वह अरिहंत बनते हैं तथा उन्हें कैवल्य ज्ञान प्राप्त हो जाता है। तीर्थंकर महाप्रभु पंच ज्ञान के धारक होते हैं। वह अपने समस्त अष्ट कर्मों का क्षय कर सिद्ध अवस्था प्राप्त करते हैं तथा मोक्ष को पा जाते हैं।
❓ क्या आप जानना चाहते हैं - तीर्थंकर प्रभु के अष्ट प्रतिहार्य कौन-कौनसे हैं?
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