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चन्द्रप्रभु जी |
प्रभु की देह की ऊंचाई 150 धनुष थी । प्रभु की आयु 10,00,000 पूर्व थी । प्रभु ने पौष कृष्ण एकादशी के दिन चन्द्रपुर नगरी में मुनी दिक्षा धारण की । इसके पश्चात् फाल्गुन कृष्ण सप्तमी को प्रभु को कैवलय ज्ञान की प्राप्ती हुई और प्रभु अरिहंत कहलाये ।
प्रभु के संघ में 93 गणधर थे । प्रभु के शासन देव ( यक्ष ) का नाम विजय देव और शासन देवी ( यक्षिणी ) का नाम मनोवेगा था । प्रभु ने सत्य , अहिंसा , अस्तेय और अपरिग्रह नामक चार्तुयाम धर्म का प्रतिपादन किया और अहिंसा का प्रचार प्रसार किया ।
प्रभु ने फाल्गुन शुक्ल सप्तमी को सम्मेद शिखर जी में निर्वाण प्राप्त किया । प्रभु ने अपने अष्ट कर्मो का क्षय किया और सिद्ध कहलाये ।
॥ इति ॥
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" जय जिनेन्द्र "
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