आरती पंच परमेष्ठी की

Abhishek Jain
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पंच परमेष्ठी की आरती (णमोकार मंत्र की आरती)

नवकार मंत्र की आरती

नवकार मंत्र में 9 पद होते हैं, इसलिए इसे **नवकार** कहा जाता है। नमस्कार मंत्र के **5 मुख्य पदों** के कारण इसे **पंच परमेष्ठी** भी कहते हैं। नवकार मंत्र **जैन धर्म** का आदि मूल है, इसे **नमस्कार महामंत्र** भी कहते हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)

पंच परमेष्ठी की आरती क्या होती है?

पंच परमेष्ठी की आरती, नवकार मंत्र (नमस्कार महामंत्र) के पाँच मुख्य पदों की स्तुति और वंदना है। यह जैन धर्म में सबसे महत्वपूर्ण आरती मानी जाती है।

णमोकार मंत्र को पंच परमेष्ठी क्यों कहते हैं?

नमस्कार मंत्र में कुल 9 पद होते हैं, लेकिन इसे पंच परमेष्ठी इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह जैन धर्म के पाँच मुख्य पूजनीय पदों (अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु) को समर्पित है।

आरती पंच परमेष्ठी की

इह विधि मंगल आरति कीजे,

पंच परमपद भज सुख लीजे।

इह विधि मंगल आरति कीजे,

पंच परमपद भज सुख लीजे॥


पहली आरति श्रीजिनराजा,

भव दधि पार उतार जिहाजा।

इह विधि मंगल आरति कीजे,

पंच परमपद भज सुख लीजे॥


दूसरी आरति सिद्धन केरी,

सुमिरन करत मिटे भव फेरी।

इह विधि मंगल आरति कीजे,

पंच परमपद भज सुख लीजे॥


तीजी आरति सूरि मुनिंदा,

जनम मरन दु:ख दूर करिंदा।

इह विधि मंगल आरति कीजे,

पंच परमपद भज सुख लीजे॥


चौथी आरति श्री उवझाया,

दर्शन देखत पाप पलाया।

इह विधि मंगल आरति कीजे,

पंच परमपद भज सुख लीजे॥


पाँचमि आरति साधु तिहारी,

कुमति विनाशन शिव अधिकारी।

इह विधि मंगल आरति कीजे,

पंच परमपद भज सुख लीजे॥


छट्ठी ग्यारह प्रतिमाधारी,

श्रावक वंदूं आनंदकारी।

इह विधि मंगल आरति कीजे,

पंच परमपद भज सुख लीजे॥


सातमि आरति श्रीजिनवानी,

‘द्यानत’ सुरग मुकति सुखदानी।

इह विधि मंगल आरति कीजे,

पंच परमपद भज सुख लीजे॥

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