Bhaktamar Stotra Shloka-28 With Meaning

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  Bhaktamar Stotra Shloka-28 With Meaning

भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म का महान प्रभावशाली स्तोत्र है । इस स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंग ने की थी । इस स्तोत्र की रचना संस्कृत भाषा में हुई थी , जो इस स्तोत्र की मूल भाषा है, परन्तु यदी आपको संस्कृत नही आती तो आपकी सुविधा के लिए Bhaktamar Stotra के श्र्लोको (Shloka) को हमने मूल अर्थ के साथ - साथ हिन्दी में अनुवादित करते हुये उसका अर्थ भी दिया है , साथ हि साथ जिन लोगो को English आती है और संस्कृत नही पढ सकते वह सधार्मिक बंधु भी English मे Bhaktamar stotra का पाठ कर सकते है । इस प्रकार से Bhaktamar Stotra Shloka-28 With Meaning की सहायता से आप आसानी से इस स्तोत्र का पाठ कर सकते है ।

चाहे भाषा कोई भी हो हमारी वाणी से श्री आदीनाथ प्रभु का गुणगाण होना चाहिए । नित्य प्रातः काल मे पूर्ण शुद्धता के साथ श्री भक्तामर स्तोत्र का पाठ अवश्य करें ।

Bhaktamar Stotra Shloka-28

Bhaktamar Stotra Shloka - 28

सर्व कार्य सिद्धि दायक

(In Sanskrit)

उच्चैर-शोक-तरु-संश्रित-मुन्मयूख-

माभाति रूप-ममलं भवतो नितांतम् ।

स्पष्टोल्लसत-किरणमस्त-तमोवितानं,

बिम्बं रवेरिव पयोधर-पार्श्ववर्ति ॥28॥

(In English)

uchchairashoka-tarusanshritamunmayukha-

mabhati rupamamalam bhavato nitantam |

spashtollasatkiranamasta-tamovitanam

bimbam raveriva payodhara parshvavarti || 28 ||

Explanation (English)

O Jina ! Sitting under the Ashoka tree, the aura of your 

sparkling body gleaming, you look as divinely splendid 

as the halo of the sun in dense clouds, penetrating the 

darkness with its rays.

(हिन्दी में )

तरु अशोक-तल किरन उदार, तुम तन शोभित है अविकार |

मेघ निकट ज्यों तेज फुरंत, दिनकर दिपे तिमिर निहनंत ||२८||

(भक्तामर स्तोत्र के 28 वें श्लोक का अर्थ )

ऊँचे अशोक वृक्ष के नीचे स्थित, उन्नत किरणों वाला, आपका उज्ज्वल रुप जो स्पष्ट रुप से शोभायमान किरणों से युक्त है, अंधकार समूह के नाशक, मेघों के निकट स्थित सूर्य बिम्ब की तरह अत्यन्त शोभित होता है |


" भगवान ऋषभदेव जी की जय "

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