Bhaktamar Stotra Shloka-29 With Meaning

Abhishek Jain
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  Bhaktamar Stotra Shloka-29 With Meaning

भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म का महान प्रभावशाली स्तोत्र है । इस स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंग ने की थी । इस स्तोत्र की रचना संस्कृत भाषा में हुई थी , जो इस स्तोत्र की मूल भाषा है, परन्तु यदी आपको संस्कृत नही आती तो आपकी सुविधा के लिए Bhaktamar Stotra के श्र्लोको (Shloka) को हमने मूल अर्थ के साथ - साथ हिन्दी में अनुवादित करते हुये उसका अर्थ भी दिया है , साथ हि साथ जिन लोगो को English आती है और संस्कृत नही पढ सकते वह सधार्मिक बंधु भी English मे Bhaktamar stotra का पाठ कर सकते है । इस प्रकार से Bhaktamar Stotra Shloka-29 With Meaning की सहायता से आप आसानी से इस स्तोत्र का पाठ कर सकते है ।

चाहे भाषा कोई भी हो हमारी वाणी से श्री आदीनाथ प्रभु का गुणगाण होना चाहिए । नित्य प्रातः काल मे पूर्ण शुद्धता के साथ श्री भक्तामर स्तोत्र का पाठ अवश्य करें ।

Bhaktamar Stotra Shloka-29

Bhaktamar Stotra Shloka - 29

नेत्र पीडा व बिच्छू विष नाशक

(In Sanskrit)

सिंहासने मणि-मयूख-शिखा-विचित्रे,

विभाजते तव वपुः कानका-वदातम ।

बिम्बं वियद्-विलस-दंशु-लता-वितानं,

तुंगोदयाद्रि-शिरसीव सहस्त्र-रश्मेः ॥29॥

(In English)

simhasane manimayukhashikhavichitre,

vibhrajate tava vapuh kanakavadatam |

bimbam viyadvilasadanshulata - vitanam,

tungodayadri - shirasiva sahastrarashmeh || 29 ||

Explanation (English)

O Jina ! Seated on the throne with kaleidoscopic hue of gems, your splendid golden body looks magnificent and attractive like the rising sun on the peak of the eastern mountain, emitting golden rays under blue sky.

(हिन्दी में )

सिंहासन मणि-किरण-विचित्र, ता पर कंचन-वरन पवित्र |

तुम तन शोभित किरन विथार, ज्यों उदयाचल रवि तम-हार ||२९||

(भक्तामर स्तोत्र के 29 वें श्लोक का अर्थ )

मणियों की किरण-ज्योति से सुशोभित सिंहासन पर, आपका सुवर्ण कि तरह उज्ज्वल शरीर, उदयाचल के उच्च शिखर पर आकाश में शोभित, किरण रुप लताओं के समूह वाले सूर्य मण्डल की तरह शोभायमान हो रहा है|


" भगवान ऋषभदेव जी की जय "

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