Bhaktamar Stotra Shloka-30 With Meaning

Abhishek Jain
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 Bhaktamar Stotra Shloka-30 With Meaning

भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म का महान प्रभावशाली स्तोत्र है । इस स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंग ने की थी । इस स्तोत्र की रचना संस्कृत भाषा में हुई थी , जो इस स्तोत्र की मूल भाषा है, परन्तु यदी आपको संस्कृत नही आती तो आपकी सुविधा के लिए Bhaktamar Stotra के श्र्लोको (Shloka) को हमने मूल अर्थ के साथ - साथ हिन्दी में अनुवादित करते हुये उसका अर्थ भी दिया है , साथ हि साथ जिन लोगो को English आती है और संस्कृत नही पढ सकते वह सधार्मिक बंधु भी English मे Bhaktamar stotra का पाठ कर सकते है । इस प्रकार से Bhaktamar Stotra Shloka-30 With Meaning की सहायता से आप आसानी से इस स्तोत्र का पाठ कर सकते है ।

चाहे भाषा कोई भी हो हमारी वाणी से श्री आदीनाथ प्रभु का गुणगाण होना चाहिए । नित्य प्रातः काल मे पूर्ण शुद्धता के साथ श्री भक्तामर स्तोत्र का पाठ अवश्य करें ।

Bhaktamar Stotra Shloka-30

 Bhaktamar Stotra Shloka - 30

शत्रु स्तम्भक

(In Sanskrit)

कुन्दावदात-चल-चामर-चारु-शोभं,

विभ्राजते तव वपुः कलधौत-कांतम् ।

उद्यच्छशांक-शुचि-निर्झर-वारि-धार-

मुच्चैस्तटं सुर-गिरेरिव शात-कौम्भम् ॥30॥

(In English)

kundavadata - chalachamara - charushobham,

vibhrajate tava vapuh kaladhautakantam |

udyachchhashanka - shuchinirjhara - varidhara-,

muchchaistatam sura gireriva shatakaumbham || 30 ||

Explanation (English)

O Tirthankara ! The snow white fans of loose fibres (giant whisks) swinging on both sides of your golden body appear like streams of water,pure and glittering as the rising moon,flowing down the sides of the peakof the golden mountain,Sumeru.

(हिन्दी में )

कुंद-पुहुप-सित-चमर ढ़ुरंत, कनक-वरन तुम तन शोभंत |

ज्यों सुमेरु-तट निर्मल कांति, झरना झरे नीर उमगांति ||३०||

(भक्तामर स्तोत्र के 30 वें श्लोक का अर्थ )

कुन्द के पुष्प के समान धवल चँवरों के द्वारा सुन्दर है शोभा जिसकी, ऐसा आपका स्वर्ण के समान सुन्दर शरीर, सुमेरुपर्वत, जिस पर चन्द्रमा के समान उज्ज्वल झरने के जल की धारा बह रही है, के स्वर्ण निर्मित ऊँचे तट की तरह शोभायमान हो रहा है|


" भगवान ऋषभदेव जी की जय "

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