Bhaktamar Stotra Shloka-42 With Meaning

Abhishek Jain
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  Bhaktamar Stotra Shloka-42 With Meaning

भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म का महान प्रभावशाली स्तोत्र है । इस स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंग ने की थी । इस स्तोत्र की रचना संस्कृत भाषा में हुई थी , जो इस स्तोत्र की मूल भाषा है, परन्तु यदी आपको संस्कृत नही आती तो आपकी सुविधा के लिए Bhaktamar Stotra के श्र्लोको (Shloka) को हमने मूल अर्थ के साथ - साथ हिन्दी में अनुवादित करते हुये उसका अर्थ भी दिया है , साथ हि साथ जिन लोगो को English आती है और संस्कृत नही पढ सकते वह सधार्मिक बंधु भी English मे Bhaktamar stotra का पाठ कर सकते है । इस प्रकार से Bhaktamar Stotra Shloka-42 With Meaning की सहायता से आप आसानी से इस स्तोत्र का पाठ कर सकते है ।

चाहे भाषा कोई भी हो हमारी वाणी से श्री आदीनाथ प्रभु का गुणगाण होना चाहिए । नित्य प्रातः काल मे पूर्ण शुद्धता के साथ श्री भक्तामर स्तोत्र का पाठ अवश्य करें ।


Bhaktamar Stotra Shloka-42

Bhaktamar Stotra Shloka - 42

युद्ध भय निवारक

(In Sanskrit)

वल्गत्तुरंग-गज-गर्जित-भीम-नाद-

माजौ बलं बलवतामपि भू-पतीनाम् ।

उद्यद्-दिवाकर-मयूख-शिखा-पविद्धं,

त्वत्कीर्त्तनात्-तम इवाशु भिदा-मुपैति ॥42॥

(In English)

valgatturanga gajagarjita - bhimanada-

majau balam balavatamapi bhupatinam !

udyaddivakara mayukha - shikhapaviddham,

tvat -kirtanat tama ivashu bhidamupaiti || 42 ||

Explanation (English)

O Victor of all vices ! As darkness withdraws with the 

rising of the sun, the armies of daunting kings, 

creating thunderous uproar of neighing horses and 

trumpeting elephants, recede when your name is chanted. 

(Your devotee not frightened of enemies.)

(हिन्दी में )

जिस रन माहिं भयानक रव कर रहे तुरंगम |

घन-सम गज गरजाहिं मत्त मानों गिरि-जंगम ||

अति-कोलाहल-माँहिं बात जहँ नाहिं सुनीजे |

राजन को परचंड देख बल धीरज छीजे ||

नाथ तिहारे नाम तें, अघ छिन माँहि पलाय |

ज्यों दिनकर परकाश तें, अंधकार विनशाय ||४२||

(भक्तामर स्तोत्र के 42 वें श्लोक का अर्थ )

आपके यशोगान से युद्धक्षेत्र में उछलते हुए घोडे़ और हाथियों की गर्जना से उत्पन भयंकर कोलाहल से युक्त पराक्रमी राजाओं की भी सेना, उगते हुए सूर्य किरणों की शिखा से वेधे गये अंधकार की तरह शीघ्र ही नाश को प्राप्त हो जाती है |


" भगवान ऋषभदेव जी की जय "


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