Bhaktamar Stotra Shloka-43 With Meaning

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 Bhaktamar Stotra Shloka-43 With Meaning

भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म का महान प्रभावशाली स्तोत्र है । इस स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंग ने की थी । इस स्तोत्र की रचना संस्कृत भाषा में हुई थी , जो इस स्तोत्र की मूल भाषा है, परन्तु यदी आपको संस्कृत नही आती तो आपकी सुविधा के लिए Bhaktamar Stotra के श्र्लोको (Shloka) को हमने मूल अर्थ के साथ - साथ हिन्दी में अनुवादित करते हुये उसका अर्थ भी दिया है , साथ हि साथ जिन लोगो को English आती है और संस्कृत नही पढ सकते वह सधार्मिक बंधु भी English मे Bhaktamar stotra का पाठ कर सकते है । इस प्रकार से Bhaktamar Stotra Shloka-43 With Meaning की सहायता से आप आसानी से इस स्तोत्र का पाठ कर सकते है ।

चाहे भाषा कोई भी हो हमारी वाणी से श्री आदीनाथ प्रभु का गुणगाण होना चाहिए । नित्य प्रातः काल मे पूर्ण शुद्धता के साथ श्री भक्तामर स्तोत्र का पाठ अवश्य करें ।

Bhaktamar Stotra Shloka-43

 Bhaktamar Stotra Shloka - 43

युद्ध में रक्षक और विजय दायक

(In Sanskrit)

कुंताग्र-भिन्न-गज-शोणित-वारिवाह-

वेगावतार-तरणातुर-योध-भीमे ।

युद्धे जयं विजित-दुर्जय-जेय-पक्षास्-

त्वत्-पाद-पंकज-वना-श्रयिणो लभंते ॥43॥

(In English)

kuntagrabhinnagaja - shonitavarivaha

vegavatara - taranaturayodha - bhime |

yuddhe jayam vijitadurjayajeyapakshas -

tvatpada pankajavanashrayino labhante || 43 ||

Explanation (English)

O conqueror of passion ! In the battlefield, where 

bravest of all warriors are eager to trudge over the 

streams of blood coming out of the bodies of elephants 

pierced by sharp weapons, the devotee having sought 

protection in your resplendent feet embraces victory. 

(Your devotee is always victorious at the end.)

(हिन्दी में )

मारें जहाँ गयंद-कुंभ हथियार विदारे |

उमगे रुधिर-प्रवाह वेग जल-सम विस्तारे ||

होय तिरन असमर्थ महाजोधा बलपूरे |

तिस रन में जिन तोर भक्त जे हैं नर सूरे ||

दुर्जय अरिकुल जीतके, जय पावें निकलंक |

तुम पद-पंकज मन बसें, ते नर सदा निशंक ||४३||

(भक्तामर स्तोत्र के 43 वें श्लोक का अर्थ )

हे भगवन् आपके चरण कमलरुप वन का सहारा लेने वाले पुरुष, भालों की नोकों से छेद गये हाथियों के रक्त रुप जल प्रवाह में पडे़ हुए, तथा उसे तैरने के लिये आतुर हुए योद्धाओं से भयानक युद्ध में, दुर्जय शत्रु पक्ष को भी जीत लेते हैं|


" भगवान ऋषभदेव जी की जय "

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