यह स्तोत्र जैन धर्म में वर्णित सोलह सतियो की स्तुती करने वाला है ,इस एक स्तोत्र के पाठ से हम सभी 16 सतियो की वंदना कर लेते है , यह स्तोत्र महामंगलदायी है , शुद्ध श्रद्धा भाव से सोलह सती स्तोत्र का नित्य पाठ करें ।
यह भी देखें - सोलह सती का छन्द
सोलह सती स्तोत्र
आदौ सती सुभद्रा च, पातु पश्चात्तु सुन्दरी।
ततश्चन्दनबाला च, सुलसा च मृगावती ॥ १ ॥
राजीमती ततश्चूला, दमयन्ती ततः परम् ।
पद्मावती शिवा सीता, ब्राह्मी पुनश्च द्रौपदी ॥ २ ॥
कौशल्या च ततः कुन्ती, प्रभावती सती बरा ।
सतीनामांक-यत्रोऽयं चतुस्त्रिंशत्-समुद्भवः ॥ ३ ॥
यस्य पार्वे सदा यन्त्रो, वर्तते तस्य साम्प्रतम् ।
भूरि-निद्रा न चायाति, नायान्ति भूतप्रेतकाः ॥ ४ ॥
ध्वजायां नृपतेर्यस्य, यन्त्रोऽयं वर्तते सदा ।
तस्य शत्रुभय नास्ति संग्रामेऽस्य जयः सदा ॥ ५ ॥
गृह-द्वारे सदा यस्य यन्त्रोऽयं ध्रियते वरः।
कार्मणादिकतन्त्रैश्च न स्यात् तस्य पराभवः ॥ ६ ॥
स्तोत्रं सतीनां सुगुरुप्रसादात्,कृतं मयोद्योत मृगाधिपेन ।
यः स्तोत्रमेतत् पठति प्रभाते,स प्राप्नुते शं सततं मनुष्यः॥७
यह भी देखें - जैन धर्म की 16 महासतिया
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" जय जिनेन्द्र "
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