प्रभु महावीर के जन्म की बधाई - (जैन भजन)

Abhishek Jain
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प्रभु महावीर का जन्म जैन धर्म के इतिहास में सबसे महान घटना है , जब महाप्रभु इस जग में तीर्थंकर रूप में आये। यह घटना इस मंगल भजन के द्वारा वर्णित की है , इस भजन को आप सामायिक के समय पढ़ सकते है ।


जैन भजन

प्रभु महावीर के जन्म की बधाई - (जैन भजन)

बधाई तीनों लोक हुई,
अजी वे तो सब जीवन प्राण आधार | टेक ॥

त्रिशलादे मता बड़ाभागन, पिता सिद्धारथ राज।
रतनकूख महावीर पधारे, देवदुंदुभि बाज ॥ १ ॥

सुखशय्या पोढ़ी त्रिशलादे, फुलवन सेज सुराग ।
चौदह सुपने उत्तम देखे, कुछ सोवत कुछ जाग ॥ २ ॥

उठ रानी जा पिऊ जगाया, जागो राज कुमार ।
अमृत वचन कोकिला सी बोले, वियम करती अबला नार॥ ३ ॥

दो कर जोड़ी कहती सुन्दर, अर्ज सुनो सुखकार ।
आज रैन मैंने सुपने देखे चौदह एक ही बार ॥ ४ ॥

राज सुपनपाठक बुलवाए, सुपने कहे सुनाय ।
दिन सुपनों का क्या फल होगा, हमको देवो बताय॥५॥

चौदह सुपने सुनके सुगनी, मन में हर्षित थाय।
राज तुम्हारे पुण्य फलेंगे, होंगे तीर्थंकर महाराज॥ ६ ॥

राज दान दियो सुगनिन को, भर-भर मोती थाल
होंस पूर सुगनी घर आए, मोतिन में हीरा लाल॥ ७ ॥

माता रक्षा करे गर्भ की, सरस निरस नहीं खाय।
अनुपान मर्यादा करती, रोम-रोम हुलसाय ॥ ८ ॥

नौ महीने साढ़े सात रात्री, बीते गर्भ मंझार ।
जा रैनी प्रभु जन्म लियो है,तीनों लोक भयो उजियार ॥ ९ ॥

चारों दिशा की छपन कुमारी, मिलकर आई तत्काल ।
चौंशठ इन्द्र चले चहुँदिश के, बोलत जै जैकार ॥ १०॥

सुगंधकारी जल की हुई वर्षा, पान फूल बरसाद ।
नगर बीच सौनियाँ बरसे, देव करें जै-जैनाद ॥११॥

घर - घर द्वारे कोले लीपें, बाँधे वन्दनवार ।
साथिये धरें दान बहु देवें, गावें मंगलाचार ॥ १२ ॥

चारों गति के जीव सुख पाए, जन्मे धर्मदयाल ।
सेढू शरण गही प्रभु थारो, भवदधि पार उतार ॥ १३ ॥


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