Bhaktamar Stotra Shloka-47 With Meaning
भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म का महान प्रभावशाली स्तोत्र है । इस स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंग ने की थी । इस स्तोत्र की रचना संस्कृत भाषा में हुई थी ।
जो इस स्तोत्र की मूल भाषा है, परन्तु यदी आपको संस्कृत नही आती तो आपकी सुविधा के लिए Bhaktamar Stotra के श्र्लोको (Shloka) को हमने मूल अर्थ के साथ - साथ हिन्दी में अनुवादित करते हुये उसका अर्थ भी दिया है , साथ हि साथ जिन लोगो को English आती है और संस्कृत नही पढ सकते वह सधार्मिक बंधु भी English मे Bhaktamar stotra का पाठ कर सकते है । इस प्रकार से Bhaktamar Stotra Shloka-47 With Meaning की सहायता से आप आसानी से इस स्तोत्र का पाठ कर सकते है ।
चाहे भाषा कोई भी हो हमारी वाणी से श्री आदीनाथ प्रभु का गुणगाण होना चाहिए । नित्य प्रातः काल मे पूर्ण शुद्धता के साथ श्री भक्तामर स्तोत्र का पाठ अवश्य करें ।
Bhaktamar Stotra Shloka - 47
सर्व भय निवारक
(In Sanskrit)
मत्त-द्विपेन्द्र-मृगराज-दवानलाहि-
संग्राम-वारिधि-महोदर-बन्धनोत्थम् ।
तस्याशु नाश-मुपयाति भयं भियेव,
यस्तावकं स्तव-मिमं मतिमान-धीते ॥47॥
(In English)
mattadvipendra - mrigaraja - davanalahi
sangrama - varidhi - mahodara-bandhanottham |
tasyashu nashamupayati bhayam bhiyeva,
yastavakam stavamimam matimanadhite || 47 ||
Explanation (English)
O Tirhankara ! The one who recites this panegyric with
devotion is never afraid of wild elephants, predatory
lions, forest inferno, poisonous pythons, tempestuous
sea, serious maladies, and slavery. In fact, fear
itself is frightened of him.
(हिन्दी में )
महामत्त गजराज और मृगराज दवानल |
फणपति रण-परचंड नीर-निधि रोग महाबल ||
बंधन ये भय आठ डरपकर मानों नाशे |
तुम सुमिरत छिनमाहिं अभय थानक परकाशे ||
इस अपार-संसार में, शरन नाहिं प्रभु कोय |
या तें तुम पद-भक्त को, भक्ति सहाई होय ||४७||
(भक्तामर स्तोत्र के 47 वें श्लोक का अर्थ )
जो बुद्धिमान मनुष्य आपके इस स्तवन को पढ़ता है उसका मत्त हाथी, सिंह, दवानल, युद्ध, समुद्र जलोदर रोग और बन्धन आदि से उत्पन्न भय मानो डरकर शीघ्र ही नाश को प्राप्त हो जाता है |
" भगवान ऋषभदेव जी की जय "
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" जय जिनेन्द्र "
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