भगवान ऋषभदेव जी का जीवन परिचय
भगवान ऋषभदेव जी इस कालक्रम में जैन धर्म के प्रवर्तक है । भगवान ऋषभदेव जी जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर है । भगवान ऋषभदेव ज…
भगवान ऋषभदेव जी इस कालक्रम में जैन धर्म के प्रवर्तक है । भगवान ऋषभदेव जी जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर है । भगवान ऋषभदेव ज…
श्री पार्श्वनाथ जी स्तोत्र जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ जी का है । यह स्तोत्र महान चमत्कारी और कल्याणकार…
भगवान महावीर की साधना का दसवां वर्ष चल रहा था। भगवान महावीर के साथ मंखली पुत्र गोशाल नाम का एक उदंड व्यक्ति भी साथ-साथ…
जैन धर्म में गणधर तीर्थंकर के शिष्य होते हैं। जैन धर्म में तीर्थंकरों की संख्या 24 है, प्रत्येक तीर्थंकर के शिष्य हो…
जैन धर्म में तीर्थंकर अरिहंत भगवान होते हैं। तीर्थंकर का अर्थ होता है तीर्थ की स्थापना करने वाला । जैन धर्म में साध…
जैन धर्म में लेश्या क्या है ? लेश्या का मतलब होता है,आत्मा का स्वभाव । आत्मा के स्वभाव से तात्पर्य है कि जिसके द्वारा …
यह स्तोत्र ' भगवान महावीर ' का है, इस स्तोत्र की रचना भागचंद जी ने की है । महाविराष्टक स्तोत्र सब प्रकार के क…
जैन साधु नंगे पांव क्यों चलते है ? जैन साधुओं का प्रमुख धर्म है 'अहिंसा' । मार्ग में किसी भी छोटे से जीव की वि…
भगवान महावीर और यक्ष भगवान महावीर एक बार अस्तिक ग्राम पधारे,उन्होंने मंदिर के पुजारी से मंदिर में ठहरने की आज्ञा मां…
नवकार मंत्र में 9 पद होते हैं, इसलिए इसे नवकार कहा जाता है । नमस्कार मंत्र के 5 मुख्य पदों के कारण इसे पंच परमेष्ठी भ…
भगवान महावीर कि साधना का 12 वां वर्ष चल रहा था। प्रभु ने अपने ज्ञान से देखा और जाना कि मेरे कर्मो का विशाल पर्वत अब भी…