पार्श्वनाथ जी का जीवन परिचय

Abhishek Jain
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भगवान पार्श्वनाथ जी जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर है । प्रभु पार्श्वनाथ जी का जन्म पौष कृष्ण दशमी के दिन वाराणसी में हुआ था । प्रभु  पार्श्वनाथ जी के माता का नाम वामादेवी तथा पिता का नाम अश्वसेन था । प्रभु पार्श्वनाथ जी का प्रतीक चिह्न सर्प था , प्रभु की देह का रंग नीला था । प्रभु के यक्ष का नाम धरणेन्द्रनाथ तथा यक्षिणी का नाम पद्मावती देवी था । 

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प्रभु पर्श्वनाथ जी

प्रभु पार्श्वनाथ जी की आयु 100 वर्ष की थी , प्रभु के देह की ऊंचाई 9 हाथ की थी । प्रभु पार्श्वनाथ जी जन्म से हि तीन ज्ञान ( श्रुतज्ञान , मतिज्ञान तथा अवधिज्ञान ) के धारक थे ।


प्रभु पार्श्वनाथ ने वैशाख कृष्ण दशमी के दिन दीक्षा ग्रहण की , दीक्षा के समय प्रभु को मनः पर्व ज्ञान की प्राप्ती हुई और प्रभु चार ज्ञान के धारक हो गये ।


इसके पश्चात प्रभु ने अनेक कष्टो और उपसर्ग को सहा , इनमें में से सबसे कठिन उपसर्ग कमठ नामक देव का उपसर्ग था , जिसने प्रभु पर पत्थर बरसाये , मूसलधार बारिश के साथ बिजली गरजाई तभी माँ पद्मावती और धरणेन्द्रनाथ प्रभु की रक्षा में आये ।

प्रभु पार्श्वनाथ के अखण्ड ध्यान को कमठ खंडित नही कर पाया और उसका मान अहंकार वही ध्वस्त हो गया , प्रभु पार्श्वनाथ अपने दीक्षा के 84 वें दिन कैवलय ज्ञान को पा गये , उनकी साधना पूर्ण हो चुकी थी , प्रभु पार्श्वनाथ प्रभु सर्वज्ञ , जिन , केवली ,अरिहंत प्रभु हो गये । 

प्रभु ने चार घाती कर्मो का नाश कर परम दुर्लभ कैवलय ज्ञान की प्राप्ती हुई थी । प्रभु पाँच ज्ञान के धारक हो गये ।


इसके पश्चात् प्रभु पार्श्वनाथ ने चार तीर्थो साधु/ साध्वी व श्रावक/ श्राविका की स्थापना की और स्वयं तीर्थंकर कहलाये । प्रभु पार्श्वनाथ जी का संघ विस्तृत था । प्रभु पार्श्वनाथ के गणधरो की संख्या 8 थी ।


प्रभु पार्श्वनाथ जी ने कैवलय ज्ञान के पश्चात् चर्तुयाम धर्म का प्रतिपादन किया था । उनकी शिक्षा में अहिंसा ,अचौर्य, अस्तेय तथा अपरिग्रह प्रमुख थे ।

इसके पश्चात प्रभु ने सम्मेद शिखरजी में श्रावण शुक्ल सप्तमी के दिन निर्वाण प्राप्त किया । प्रभु के मोक्ष के साथ ही प्रभु ने अष्ट कर्मो का क्षय किया और सिद्ध हो गये ।

प्रभु जन्म - मरण के भव बंधनो को काट कर हमेशा के लिए मुक्त हो गये ।

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