जैन धर्म में श्रावक - श्राविका कौन होते है ?

Abhishek Jain
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जैन धर्म में श्रावक - श्राविका जैन धर्म के अनुयायियो को कहते है । जैसे - मैं जैन धर्म को मानता हूँ , मैं जैन हूँ परन्तु मैने मुनी दीक्षा नही ली परन्तु फिर भी मैं जैन धर्म के नियमों का पालन करता हूँ अतः मैं एक जैन श्रावक हूँ अगर कोई स्त्री जैन धर्म की अनुयायी है तो वह एक जैन श्राविका है ।

श्रावक - श्राविका

कोई भी व्यक्ति साधारण नही होता धर्म का पालन व त्याग हि उसे महान बनाता है , जो व्यक्ति गृहस्थ में रहकर भी धर्म की शरण लेता है , वह सच्चा श्रावक जैन धर्म के 12 श्रावक व्रत का पालन करता है ।

जैन धर्म में तीर्थंकर महाप्रभु कैवलय ज्ञान के पश्चात् धर्म की स्थापना के लिए चार तीर्थो की स्थापना करते है ।

ये चार तीर्थं क्रमशः - साधु , साध्वी व श्रावक और श्राविका होते है ।

जैन धर्म में वह व्यक्ति जो गृहस्थ धर्म का पालन करते हुये जैन धर्म के नियमो का पालन करता है , वह व्यक्ति जैन धर्म का अनुयायी जैन श्रावक कहलाता है ।

इसी प्रकार यदी कोई स्त्री गृहस्थ धर्म का पालन करते हुये जैन धर्म के नियमो का पालन करती है , वह नारी जैन धर्म की अनुयायी जैन श्राविका कहलाती है ।

अतः इस प्रकार सें गृहस्थ धर्म का पालन करने वाले, जिन्होने संन्यास ग्रहण नही किया है और वह घर पर रहकर ही इस संसारिकता का पालन करते हुये , सामाजिक दायरे में रहकर जो जैन धर्म का पालन करते है, वह अनुयायी श्रावक/ श्राविका कहलाते है ।


जैन धर्म के नियम जितने साधु / साध्वी के लिए होते है , उन नियमो में थोड़ा लचीलापन लाकर अणुव्रत के रूप में धर्म का पालन किया जाता है । ताकी इस समाज में रहकर भी वह धर्म का उचित तरीके से निर्वाह कर सकें ।

एक उदाहरण के द्वारा समझने का प्रयास करें -:

जैन धर्म में एक साधु / साध्वी जी छः काय के प्रणियो की रक्षा का वचन लेते है, परन्तु वही एक जैन श्रावक/ श्राविका केवल त्रस काय के जीवों की रक्षा का वचन लेते है , क्योकी गृहस्थी ( समाज) में रहकर न चाहते हुये भी हिंसा हो जाती है , अतः इस प्रकार से जैन श्रावक/श्राविका केवल एक त्रस काय के जीवो की रक्षा का नियम ग्रहण करते है । बाकी पाँच काय के जीवो के लिए जहाँ तक हो सके वहाँ तक उनकी रक्षा का प्रयास किया जाता है ।


एक जैन श्रावक धर्म के पालन के लिए 12 श्रावक के व्रत ग्रहण करता है और इन धर्मो के पालन के लिए वह श्रावक के 14 नियमो का पालन करता है ।

( ज्यादा जानकारी के लिए श्रावक के 12 व्रत और श्रावक के 14 नियम वाला post देखें )

एक जैन श्रावक कई प्रकार सें धर्म का पालन करता है यथा वह प्रतिदिन सामायिक करता हैं , जो श्रावक के व्रत का नवां नियम होता है ।

जैन धर्म के ग्रंथो में श्रावक / श्राविका के 21 गुणो का वर्णन होता है -

( श्रावक के 21 गुण वाला Post देखे )

जैन धर्म में श्रावक के 21 गुणो के अलावा श्रावक के 3 मनोरथ का भी उल्लेख किया गया है -

श्रावक के 3 मनोरथ निम्नलिखत है -

1. श्रावक यह भावना भाये कि वह शुभ दिन कब आएगा जब मैं अल्प या अधिक परिग्रह का त्याग करूंगा ।
2. श्रावक यह चिंतन करे कि वह शुभ समय कब प्राप्त होगा जब मैं गृहस्थावास को छोड़कर संयम ग्रहण करूंगा ।
3. श्रावक यह विचार करे कि वह मंगल बेला कब आएगी जब मैं अंतिम समय संलेखना व अनशन कर, 
मरण की इच्छा न करता हुआ समाधि मरण को प्राप्त करूंगा ।

इस प्रकार से जैन धर्म का अनुयायी इस संसार में रहकर भी धर्म का निर्वाह कर सकता है , परन्तु न जाने क्यों ? प्रभु महावीर के इस वैज्ञानिक धर्म को कठोरता के साथ जोड़ दिया गया , प्रभु महावीर ने दो प्रकार के धर्मो का प्रतिपादन किया था ।

एक था साधु का धर्म और दुसरा था मध्यम प्रकृती का श्रावक धर्म ।

साधु धर्म - इन दोनो में अंतर सिर्फ इस बात का है कि अगर आप में शक्ति है और धर्म की प्रबल भावना है तब आप इस संसार से सन्यास लेकर साधु बन सकते है और उत्तम धर्म का पालन कर अपने जन्म जन्मातरो से चले आ रहे भव - बंधनो को काटकर मुक्ति कि ओर अग्रसर हो सकते है , साधु धर्म सर्वोत्तम होता है ।


श्रावक धर्म - यदि आप किसी कारण वश सन्यास ग्रहण नही कर सकते , आप में साधु धर्म पालने का सामर्थ्य नही है । तब भी आप धर्म के सामान्य नियमो का पालन कर अपना अगला भव सुधार सकते है ।

इस प्रकार से एक जैन श्रावक/ श्राविका उत्तम धर्म का पालन करते है और अपना भव सुधारते है ।

अगर मुझसे कोई त्रुटी हुई हो तो ' तस्स मिच्छामी दुक्कडम '
(नोट : यह लेख सिर्फ सामान्य जानकारी प्रदान करने के लिए है । )

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