गणधर सुधर्मास्वामी जी का जीवन परिचय

Abhishek Jain
0

आचार्य सुधर्मास्वामी भगवान महावीर के पांचवे गणधर थे वर्तमान में सभी जैन आचार्य व साधू उनके नियमों का समान रूप से पालन करते हैं। इनका जन्म ६०७ ईसा पूर्व हुआ था तथा इन्हें ५१५ ईसा पूर्व में केवलज्ञान प्राप्त हुआ एवं ५०७ ईसा पूर्व में १०० वर्ष की आयु में इनका निर्वाण हुआ। जिन्होंने गौतम गणधर के निर्वाण के पश्चात बारह बर्षो तक जैन धर्म की आचार्य परम्परा का निर्वाह किया।

जानिये - जैन धर्म में गणधर क्या होते हैं ? 

सुधर्मास्वामी जी 'कोल्लाग' सन्निवेश के अग्नि वेश्यायन गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनकी माता का नाम भदिला और पिता का नाम धम्मिल था।

भगवान महावीर के समसवरण में पांच सौ शिष्यों के साथ दीक्षा ग्रहण की। सुधर्मास्वामी ही भगवान महावीर के उत्तराधिकारी आचार्य हुए। ये वीर निर्वाण के बीस वर्ष बाद तक संघ की सेवा करते रहे। सुधर्मास्वामी जी 50 वर्ष गृहवास में एवं 42 वर्ष छद्मस्थ पर्याय में रहे और 7 वर्ष केवली रूप से धर्म का प्रचार कर 100 वर्ष की पूर्ण आयु में राजगृह नगर में मोक्ष पधारे।

तीर्थंकर महावीर के पाँचवें गणधर

गणधर सुधर्मास्वामी जी की शंका

भगवान महावीर के दीक्षा ग्रहण करने से पहले तक सुधर्मास्वामी जी ब्राह्मण थे । दीक्षा के बाद उन्होने अपनी शंका समाधान के उपरांत जैन धर्म अपना लिया था और वह भगवान महावीर स्वामी के प्रथम शिष्य, प्रथम गणधर ,सुधर्मास्वामी जी के नाम से विख्यात हुये ।

प्रत्येक गणधर को अपने ज्ञान में कोई ना कोई शंका थी, जिसका समाधान भगवान महावीर ने किया था

सुधर्मास्वामी को शंका थी कि, इहलोक और परलोक होता है या नही ?


जानिये - भगवान महावीर के दस अनमोल विचार


॥ इति ॥

अगर आपको मेरी यह blog post पसंद आती है तो please इसे Facebook, Twitter, WhatsApp पर Share करें ।

अगर आपके कोई सुझाव हो तो कृप्या कर comment box में comment करें ।

Latest Updates पाने के लिए Jainism knowledge के Facebook page, Twitter account, instagram account को Follow करें । हमारे Social media Links निचे मौजूद है ।

Tags

एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

कृपया कमेंट बॉक्स में कोई भी स्पैम लिंक न डालें।

एक टिप्पणी भेजें (0)