गणधर व्यक्तस्वामी जी का जीवन परिचय

Abhishek Jain
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व्यक्तस्वामी जी, भगवान महावीर के चतुर्थ गणधर थे। वे अपने 500 शिष्यो के साथ भगवान महावीर के शिष्य बने। व्यक्तस्वामी जी कोल्लाग सन्निवेश के भारद्वाज गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनकी माता का नाम वारुणी और पिता का नाम धनमित्र था। इन्हें शंका थी कि ब्रह्म के अतिरिक्त सारा जगत् मिथ्या है। 

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व्यक्तस्वामी जी ने पाँच सौ शिष्यों के साथ पचास वर्ष की अवस्था में भगवान महावीर के पास श्रमण-दीक्षा ग्रहण की। बारह वर्ष तक छद्मस्थ साधना करके इन्होंने केवलज्ञान प्राप्त किया और अठारह वर्ष तक केवली- अवस्था में रहकर भगवान के जीवनकाल में ही एक मास के अनशन से अस्सी वर्ष की उम्र में मुक्ति प्राप्त की।

भगवान महावीर के चतुर्थ गणधर

गणधर व्यक्तस्वामी जी की शंका

भगवान महावीर के दीक्षा ग्रहण करने से पहले तक व्यक्तस्वामी जी ब्राह्मण थे । दीक्षा के बाद उन्होने अपनी शंका समाधान के उपरांत जैन धर्म अपना लिया था और वह भगवान महावीर स्वामी के प्रथम शिष्य, प्रथम गणधर व्यक्तस्वामी जी के नाम से विख्यात हुये ।

प्रत्येक गणधर को अपने ज्ञान में कोई ना कोई शंका थी, जिसका समाधान भगवान महावीर ने किया था

व्यक्तस्वामी के मन में शंका थी कि, पंचभूत आदि तत्व होते हैं या नहीं ?

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॥ इति ॥

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