जैन धर्म में वासुदेव

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जैन धर्म में वासुदेव कि संख्या 9 है, जैन धर्म में वासुदेव धर्म के रक्षक माने जाते है, जो प्रति वासुदेवो का वध कर, धर्म कि स्थापना करते है, ये पृथ्वी के 6 खण्डो में से 3 के स्वामी होते है , इनका राज्य विशाल होता है, वासुदेव बलशाली व रिद्धी सम्मपदा युक्त होते है,
वासुदेव श्री कृष्ण जी
वासुदेव श्री कृष्ण जी

जैन धर्म के 9 वासुदेवो के नाम निम्नलिखित है-:

1.श्री त्रिपुष्ठ कुमार जी

2. श्री द्विपृष्ठ कुमार जी

3.श्री श्री स्वयंभू जी

4. श्री पुरुषोत्तम जी

5. श्री पुरुषसिंह जी

6. श्री पुरुषपुंडरीक जी

7. श्री पुरुषदत्त जी

8. श्री लक्ष्मण जी

9. श्री कृष्ण जी

इस प्रकार से जैन धर्म में 9 वासुदेव हुये है , ये सभी वासुदेव 11 वें तीर्थंकर श्री श्रेयांसनाथ जी के काल से लेकर 22 वें तीर्थंकर श्री अरिष्टनेमी जी के काल के मध्य हुये थे अर्थात् प्रथम वासुदेव श्री त्रिपुष्ठ कुमार जी प्रभु श्रेयांसनाथ जी के काल में हुये तथा अंतिम वासुदेव श्री कृष्ण जी प्रभु अरिष्टनेमी जी के काल में हुये थे । जैन धर्म मेें श्री कृष्ण जी को नवें वासुदेव के रूप में पूजा जाता है ।
 
जब कभी भी वासुदेव जन्म लेते है तो वासुदेव से पहले प्रतिवासुदेव का जन्म होता है , तथा वासुदेव के साथ भाई के (सगा भाई नही) रूप में बलदेव भी जन्म लेते है । अतः प्रतिवासुदेव , वासुदेव व बलदेव एक हि काल में होते है और जब वासुदेव जी जन्म लेते है तब चक्रवर्ती का जन्म नही होता है । अतः ये श्लाकापुरुष उत्तम धर्म धारण किये होते है ।

अगर कोई त्रुटी हो तो "तस्स मिच्छामी दुक्कडम ".

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" जय जिनेन्द्र ".

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