गणधर मौर्यपुत्र जी का जीवन परिचय

Abhishek Jain
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मौर्यपुत्र भगवान महावीर के ७ वें गणधर(शिष्य) थे। भगवान महावीर के जीवन काल मे ही इन्होंने निर्वाण प्राप्त किया।

मौर्यपुत्र जी मौर्य सन्निवेश के काश्यप गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम मौर्य और माता का नाम विजया देवी था।

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मौर्यपुत्र जी ने तीन सौ पचास (350) शिष्यों के साथ पैंसठ वर्ष की उम्र में श्रमण दीक्षा स्वीकार की। 14 वर्ष छद्मस्थ भावों में रहकर 79 वर्ष की अवस्था में इन्होंने तपस्या से केवलज्ञान प्राप्त किया और सोलह वर्ष तक केवली पर्याय में रहकर भगवान के सामने ही 95 वर्ष की अवस्था में सिद्ध - बुद्ध और मुक्त हुये ।

महावीर स्वामी जी के साँतवें गणधर

गणधर मौर्यपुत्र जी की शंका

भगवान महावीर के दीक्षा ग्रहण करने से पहले तक मौर्यपुत्र जी ब्राह्मण थे । दीक्षा के बाद उन्होने अपनी शंका समाधान के उपरांत जैन धर्म अपना लिया था और वह भगवान महावीर स्वामी के सांतवें शिष्य, सातवें गणधर , मौर्यपुत्र जी के नाम से विख्यात हुये ।

प्रत्येक गणधर को अपने ज्ञान में कोई ना कोई शंका थी, जिसका समाधान भगवान महावीर ने किया था

मौर्यपुत्र के मन में शंका थी कि, क्या देवता होते हैं या नहीं ?

जानिये - जैन धर्म में श्रावक - श्राविका कौन होते है ?

॥ इति ॥

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