जैन धर्म की बारह भावना | बारह भावना - जैन धर्म

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जैन धर्म में भावना का विशेष महत्व हैं, जैन धर्म भावना प्रधान धर्म है। जैन धर्म में बारह प्रकार कि भावना का वर्णन हैं, जो आत्मा को धर्म का दर्शन कराती है।


जैन धर्म की बारह भावना

बारह भावना - जैन धर्म

1. अनित्य भावना

राजा राणा छत्रपति, हाथिन के असवार,
मरना सबको एक दिन, अपनी अपनी बार !

2. अशरण भावना

दल बल देवी देवता, मात पिता परिवार ,
मरती बिरियाँ जीव को, कोई न राखनहार!

3. संसार भावना

दाम बिना निर्धन दुखी, तृष्णावश धनवान,
कहूं न सुख संसार में, सब जग देख्यो छान !

4. एकत्व भावना

आप अकेला अवतरे, मरै अकेलो होय ,
घर संपत्ति पर प्रगट ये, साथी सगा न कोय !

5. अन्यत्व भावना

जहाँ देह अपनी नहीं, तहाँ न अपनों कोय ,
घर संपत्ति पर प्रगट ये, तहाँ न अपनों कोय !

6. अशुचि भावना

दिपै चाम -चादर मढ़ी, हाड पींजरा देह ,
भीतर या सम जगत में, अवर नहीं घिन -गेह !

7. आश्रव भावना

मोह नींद के जोर, जगवासी घूमैंसदा ,
कर्म -चोर चहुँ ओर, सरवस लूटें सुध नहीं !

8. संवर भावना

सतगुरु देय जगाय, मोह नींद जब उपशमें,
तब कछु बनहिं उपाय, कर्मचार आवत रुकें !

9. निर्जरा भावना

ज्ञान दीप तप-तेल भर, घर शोधे भृम छोर ,
या विधि बिन निकसै नहीं, पैठे पूरब चोर !

10. लोक भावना

पंच महाव्रत संचरण, समितिपंच परकार,
प्रबल पंच इन्द्रिय विजय, धार निर्जरा सार !

11. बोधि दुर्लभ भावना

चौदह राजू उतंग नभ, लोक पुरुष संठान
तामें जीव अनादितैं, भरमत हैं बिन ज्ञान !

12. धर्म भावना

धन कन कंचन राजसुख, सभी सुलभ कर जान ,
दुर्लभ हैं संसार में, एक जथारथ ज्ञान!


" जय जिनेन्द्र "

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" जय जिनेन्द्र ".

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