जानिये - जैन धर्म में तीर्थंकर कौन होते है ?
जैन आचार्यों के अनुसार प्रभु महावीर ने अपनी साधना के दौरान अनेक कष्टो को सहा था , प्रभु महावीर का साधनाकाल लगभग 12 वर्ष का था ।
पढ़िये - भगवान महावीर की साधना
प्रभु महावीर के पिता का नाम राजा सिद्धार्थ व माता का नाम त्रिशला था । माता का नाम त्रिशला होने के कारण इन्हें त्रिशालानंन्द भी कहा जाता है । प्रभु महावीर के बडे भाई का नाम नंदीवर्धन था तथा प्रभु महावीर के एक बहन भी थी जिसका नाम सुदर्शना था , वह भी उम्र में प्रभु महावीर से बडी थी । भगवान महावीर अपने माता - पिता की तीसरी संतान थे ।
जानिये - तीर्थंकर और उनके प्रतीक चिह्न
जब प्रभु का जन्म हुआ तभी गर्भकाल से हि राजा सिद्धार्थ के खजाने में अभूतपूर्व वृद्धी हुई , खेत फसलो से लहलहा उठे , चारो तरफ से राजा को शुभ और मंगल समाचार आने लगे , बालक के इस सौभाग्य को देखते हुये बालक के जन्म के पश्चात उनका नाम वर्द्धमान रखा गया ।
प्रभु महावीर जन्म से हि श्रुतज्ञान , मतिज्ञान व अवधिज्ञान से युक्त थे , तीर्थंकर महाप्रभु जन्म से हि 3 ज्ञान से युक्त होते है , जब प्रभु महावीर ने अपने भ्राता नन्दीवर्धन कि आज्ञा ले दीक्षा ली तो दीक्षा के समय उन्हें चर्तुथ ज्ञान मनपर्वज्ञान की प्राप्ती हुई । केवल एक हि सत्य परमशाश्वत केवलय ज्ञान के लिए उनकी यात्रा प्रारम्भ रही ।
प्रभु महावीर की साधना सत्य की साधना थी और प्रभु करुणा , दया , अहिंसा के अपार सागर थे । इन 12 वर्षो में प्रभु ने अनेक प्रकार के उपसर्गो को समभाव से सहा , कभी उन्हे यक्ष ने उपसर्ग दिये , कभी सगंम देव ने , कभी वह आदिवासीयो के बीच थे और कभी उनका छः मासी अभिग्रह जिसमें उन्होने चंदनबाला का कल्याण किया था ।
पढ़िये - भगवान महावीर और यक्ष का उपसर्ग
प्रभु ने 12 वर्ष तक समभाव से उपसर्ग सहन कर अपने जन्म जन्मांतरो से चले आ रहे कर्म शत्रुओ का नाश कर परम दुर्लभ कैव्लय ज्ञान प्राप्त किया । प्रभु की साधना पूर्ण हुई , प्रभु अरिहंत , केवली बन गये इसके पश्चात् प्रभु ने चार तीर्थो साधु , साध्वी व श्रावक - श्राविका की स्थापना कि और स्वयं तीर्थंकर कहलाये ।
प्रभु महावीर का जन्म 599 ईसा पूर्व में कुण्डलपुर ( वैशाली के निकट ) इक्ष्वाकु कुल में हुआ था , प्रभु का प्रतीक चिह्न सिंह था , प्रभु की देह का रंग स्वर्ण के समान पीला था । प्रभु महावीर की देह का आकार 1 धनुष के बराबर था तथा प्रभु की आयु 72 वर्ष की थी । प्रभु का जन्म चैत्र शुक्ल त्रियोदशी के दिन हुआ जिसे हम सभी ' महावीर जयंती ' के रूप में मनाते है । प्रभु की दीक्षा 30 वर्ष की आयु में हुई थी । प्रभु को केवलय ज्ञान की प्राप्ती 42 वर्ष की अवस्था में हुई थी ।
जानिये - महावीर जयंती क्या होती है ?
प्रभु महावीर ने कैव्लय ज्ञान के पश्चात पंच महाव्रत - सत्य , अहिंसा , अस्तेय , अपरिग्रह तथा ब्रह्माचार्य का उपदेश दिया ।
प्रभु महावीर से पूर्व प्रभु पार्श्वनाथ का धर्म चर्तुयाम धर्म था , प्रभु महावीर ने उसे विस्तृत कर उसमें ब्रह्माचार्य महाव्रत को जोड़ा ।
जानिये - जैन धर्म में गणधर कौन होते है ?
प्रभु महावीर का संघ बहुत विस्तृत था , प्रभु के संघ में 36000 साध्वी तथा 18000 साधु थे । प्रभु महावीर के 11 गणधर थे , जिनमें गौतम स्वामी जी उनके मुख्य तथा प्रथम शिष्य थे ।
पढ़िये - भगवान महावीर के 11 गणधर
प्रभु महावीर ने चैत्र कृष्ण अमावस्या के दिन जिसे हम दीपावली के रूप में मनाते है , दीपावली के दिन प्रभु महावीर ने निर्वाण प्राप्त किया और प्रभु सिद्ध अवस्था को पा गये , प्रभु महावीर सदा - सदा के लिए मुक्त हो गये और हमें परम पावन जिनवाणी से मुक्ती का मार्ग प्रशस्त कर गये । प्रभु महावीर का निवार्ण पावापुरी ( पटना ) में 527 ई. पू. में हुआ था ।
जैन धर्म के इस काल के अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर का जीवन हमें अहिंसा तथा सत्य के साथ जीवन जीने कि सीख देता है , प्रभु की करुणा , दया से न जाने कितने जीवों ने बोधी लाभ पाया चंडकौशिक जैसे नाग का क्रोध शीतल जल के समान शांत हो गया ।
नारी को सर्वप्रथम अधिकार देने वाले और उत्थान करने वाले प्रभु महावीर ही थे । चंदनबाला जी को दीक्षा दे प्रभु ने धार्मिक अधिकार प्रदान किये थे जो उस काल मे सर्वप्रथम थे क्योकि आजीवक मत स्त्रियो को दीक्षा नही देता था , हिन्दु धर्म में भी उस काल में स्त्रियो के धार्मिक अधिकार छीन लिये थे । प्रभु महावीर के समकक्ष भगवान गौतम बुद्ध ने भी उस समय तक स्त्रियो को दीक्षा नही दी थी बाद में अपने शिष्य आन्नद के कहने पर ही उन्होंने सहमति व्यक्त कि थी । इस प्रकार से प्रभु महावीर नारी उत्थान्न के अग्रदूत थे ।
प्रभु महावीर की अहिंसा हि धर्म की शक्ति है , इसलिए जैन धर्म का प्रधान वाक्य " अहिंसा परमो धर्मः " है ।
अगर कोई भी त्रुटी हो तो " तस्स मिच्छामी दुक्कडम ".
पढिये - भगवान महावीर स्वामी की आरती
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" जय जिनेन्द्र "
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